चिश्ती पंथ में तीन संत ऐसे हुए, जिनके सामने बादशाहों को भी झुकना पड़ा और आज भी हजारों मतावलंबी उनको याद करते हैं। इसमें सर्वप्रथम मुईनुद्दीन हुए हैं जिन्होंने हिंदुस्तान में चिश्ती पंथ जारी किया और जिनके अजमेर में दफन होने के कारण अजमेर ‘अजमेर शरीफ’ कहलाने लगा। उनके बाद उनके मित्र और जानशीन कुतुब साहब गिने जाते हैं, जिन्होंने महरौली के आसपास के खंडहरात में जो कुछ दिलचस्पी है, उसको अपना नाम दे दिया, और तीसरे, जो किसी से कम नहीं थे, कुतुब साहब के शिष्य पाकपट्टन के रहने वाले फरीदुद्दीन शकरगंज करामातों को दिखलाने वाले गुजरे हैं जिन्होंने शेख निजामुद्दीन औलिया में ईश्वरीय शक्ति को जगाया।

निजामुद्दीन चिश्तियों में अंतिम, लेकिन बहुत सी बातों में प्रथम कोटि के संत गुजरे हैं, जिनमें से एक संत की पवित्रता और उस जमाने के अनुसार एक सियासतदां की बुद्धिमत्ता भी थी। उनका मनुष्य सद्भाव का ज्ञान धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन पर अवलंबित नहीं था, बल्कि मनुष्य जीवन के अनुभव से प्राप्त हुआ था। इस अनुभव के कारण उनके बारे में लोगों ने तरह-तरह की धारणाएं बनाईं। किसी ने उन्हें करामाती बताया। लोगों ने उनको नाना रूपों में देखा।

वह अलाउद्दीन खिलजी और मोहम्मद शाह तुगलक के मित्र थे, जो दिल्ली के बादशाह बने। पहला अपने चाचा के कत्ल के पश्चात और दूसरा अपने पिता के कत्ल के बाद बादशाह बना था। समाधि लगाने को अवस्था में उनको जलालुद्दीन फीरोज शाह खिलजी की मृत्यु का ठीक समय मालूम हो गया था, जो मानकपुर में हुई थी, और उन्होंने अपने शिष्यों को यह बताकर आश्चर्यचकित कर दिया था।

इसी प्रकार तुगलक शाह के संबंध में भी उन्होंने कह दिया था कि वह अब दिल्ली न देख सकेगा। उनकी यह भविष्यवाणी ठीक निकली और तुगलकाबाद से चार मील दूर अफगानपुर स्थान पर बादशाह की मृत्यु हो गई। 1303 ई. में जब मंगोलों ने अलाउद्दीन खिलजी के राज्य पर आक्रमण किया तो निजामुद्दीन की दुआओं से वे लौट गए, यह आम विश्वास है। इब्नबतूता ने इन्हें निजामुद्दीन बताऊ के नाम से पुकारा है और लिखा है कि मोहम्मद तुगलक उनके दर्शनों को अक्सर जाया करता था और औलिया ने अपनी एक मुलाकात में उसे दिल्ली की गद्दी बख्श दी थी।

हजरत निजामुद्दीन के अन्य मित्रों में सैयद नसीरुद्दीन महमूद चिराग दिल्ली के संत और कवि खुसरो माने जाते हैं। अपने जीवन काल में उनके लाखों पैरोकार थे और उनकी मृत्यु के बाद आज तक उनकी दरगाह पर मेले लगते हैं, जहां हिंदुस्तान-भर से यात्री आते हैं और विश्वास करने वालों का कहना है कि आज भी उनकी करामातें देखने में आती हैं।

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