मुगल काल की दिल्ली : फरीद खां की सराय (1608 ई.)
दिल्ली दरवाजे से निकलकर सीधे नई दिल्ली को जाएं तो दाएं हाथ पर पुरानी दिल्ली जेल हुआ करती थी। यह वास्तव में सराय थी। पुरानी दिल्ली के साथ यह सराय भी वीरान हो गई। आलमगीर सानी और शाह आलम ही के समय में यह बिल्कुल वीरान हो गई थी। अंग्रेजों ने इसे जेलखाना बना लिया था। आजादी की लड़ाई के दिनों में इस जेल में बड़े-बड़े नेता रखे गए थे। डा. अंसारी, पंडित मदनमोहन मालवीय, विट्ठलभाई पेटल, विधान चंद्र राय- ये सभी इस जेल में रहे।
दिल्ली के तो तमाम राजनीतिक कैदी इस जेल में रहे। मास्टर अमीरचंद, अवधबिहारी, जो पुराने क्रांतिकारी थे, उनको इसी जेल में फांसी दी गई। इस लिहाज से यह स्थान बड़ा ऐतिहासिक रहा है। अब तो तमाम पुरानी इमारतें तोड़कर यहां आजाद मेडिकल कालेज बना दिया गया है। मुगलों के जमाने में यह फरीद खां की कारवां सराय थी। फरीद खां शाहजहां के समय में गुजरात के सूबेदार थे। फरीदाबाद भी उन्हीं का बसाया था, जो दिल्ली से 15 मील है। सलीमगढ़ के किले को भी उन्होंने ठीक करवाया। फरीद खां सराय शाह जी में दफन हैं, जो बेगमपुर की मस्जिद से पूर्व में कोई 400 गज पर है।