सन 1959 में एक फिल्म आयी थी कागज के फूल। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक गुरूदत्त थे। फिल्म की कहानी अपने दौर के हिसाब से बहुत ही आधुनिक थी। फिल्म की कहानी कुछ ऐसी थी कि, एक निर्देशक को एक अनाथ लडकी से प्यार हो जाता है। निर्देशक उसे एक प्रसिद्ध अभिनेत्री बनाना चाहता है। इसके लिए वो फिल्में भी बनाने का विचार कर रहा है। हालांकि निर्देशक की पत्नी और घरवालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं। इसके बाद किस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। हीरो कैसे उन परिस्थितियों से जूझता है, यह सब फिल्म में दर्शाया गया है।
इस फिल्म का एक गाना ‘वक्त ने किया क्या हसीं सितम (Waqt Ne Kiya Kya Haseen Sitam ) आज भी काफी लोकप्रिय है। इस गाने में कई इफेक्ट यूज किए गए थे जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया। इस गाने में एक लाइट इफेक्ट दिखता है, गाने के बोल के मुताबिक लाइट की वजह से गाने में चार चांद लग जाते हैं।
उस जमाने में किसी भी इफेक्ट को क्रिएट करना मुश्किल था। क्योंकि संसाधन बहुत कम होते थे। गाने के बोल के हिसाब से इतनी ऊंचाई से बिना लाइट को फैलाए शूटिंग मुश्किल थी। इस फिल्म के कैमरामैन बीके मूर्ति साहब थे। महबूब स्टूडियो में फिल्म की शूटिंग चल रही थी। उन्होंने अपनी जीवनी में लिखा है कि सुबह और दोपहर में धूप की वजह से धूल के कण बीम पर लाइट की तरह चमकते थे। मूर्ति ने कहा कि जिस समय धूप तेज हो, उस समय तो इफेक्ट आसानी से लिया जा सकता है। लेकिन बीके दत्त चाहते थे कि इफेक्ट मन मुताबिक क्रिएट किया जाए।
बीके मूर्ति बहुत उलझन में थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था। एक एक दिन गुजरते जा रहे थे। एक दिन वो खाना खा रहे थे। मेकअप मैन पास से गुजरात तो लाइट का एक पुंज उठा। दरअसल, मेकअप मैन शीशा लिए हुए था। सूरज की रोशनी में शीशा चमक उठा। उन्होंने प्रोडक्शन हाउस से शूटिंग के दौरान दो शीशे का इंतजाम करने को कहा। एक शीशा नीचे रखा और दूसरा छत पर रखा। इस तरह स्पेशल इफेक्ट क्रिएट किया गया।