अल्तमश की मृत्यु 1236 ई. में हुई। यह पहला मुस्लिम बादशाह था, जिसका मकबरा हिंदुस्तान में बना। यह मकबरा कुव्वतुलइस्लाम की पुश्त पर उत्तर-पश्चिमी कोने में बना हुआ है और शायद उन्हीं कारीगरों का बनाया हुआ है, जिन्होंने मस्जिद बनाई, क्योंकि दोनों एक ही नमूने की इमारतें हैं। उस जमाने में मेमार अधिकतर हिंदू थे और वे अपने देश की कारीगरी को ही जानते थे। मुसलमानों की कारीगरी भिन्न प्रकार की थी, मगर उसको सीखने में हिंदुओं को समय लगा। यही कारण है कि मुस्लिम काल की शुरूआत की इमारतों में वह मुसलमानी कला देखने में नहीं आती, जो बाद की इमारतों में दिखाई देती है।

इमारत लाल पत्थर की है, जो बाहर से चालीस मुरब्बा फुट है और अंदर से तीस मुरब्बा फुट। अंदरूनी भाग की दीवारों में पच्चीकारी का बहुत सुंदर काम बना हुआ है। दो दीवारों पर खुदाई की जगह रंगीन फूल-पत्ती का काम था। कब्र भी बहुत बड़ी और अच्छी संगमरमर की बनी हुई है। छत न होने के कारण अंदर के हिस्से को मौसमी तब्दीलियों से नुकसान पहुंचा है। वैसे सात सौ वर्ष से ऊपर की बनी हुई यह इमारत देखने योग्य है। असल कब्र तहखाने में है। वहां 21 सीढ़ी उतरकर जाते हैं।

अल्तमश ने कुव्वतुल इस्लाम की मस्जिद में तीन दरवाजे 1220 ई. में और बनवाए। यह जिक्र ऊपर आ चुका है। इसके अतिरिक्त उसने एक बहुत बड़ा हौज ‘हौज शम्सी’ कस्बा महरौली में 1231 ई. में बनाया जो सौ एकड़ जमीन पर बना हुआ है। यह लोहे की कीली से एक मील है। इब्नबतूता ने इस हौज के संबंध में लिखा है।

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