दी यंगिस्तान, नई दिल्ली

प्राचीन काल से कबूतर इन्सान का दोस्त, हमदम और हमराज रहा है। पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ के महलों में भी कबूतर पाले जाते थे। राजा-महाराजा सभी कबूतर पालने के शौकीन थे। महलों में रानियां और राजकुमारियां झरोखों में बैठकर कबूतरों का तमाशा देखा करती थीं। जब मुसलमान हिन्दुस्तान में आए तो उन्हें भी कबूतर पालने का शौक हुआ। शुरू-शुरू में तो यह शौक़ सुल्तानों और अमीरों तक रहा, लेकिन चूंकि धार्मिक नेताओं ने कबूतर पालने का विरोध नहीं किया, यह शौक आम लोगों में भी हो गया। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के कबूतरखाने में सबसे दुर्लभ कबूतर थे जो उसे अपने बाप-दादा से विरसे में मिले थे। फीरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में कोटला बनवाया और दुर्लभ परिन्दों को पालने में बड़ी दिलचस्पी ली। उसके अजायबख़ाने में अनोखे परिन्दे और चरिन्द चुन-चुनकर रखे गए थे।

फीरोजशाह की मृत्यु के बाद जब तुगलकों की सल्तनत डगमगाने लगी तो तैमूर लंग एक बड़ा लश्कर लेकर उत्तर और पश्चिम के पहाड़ी दरों में से तूफान की तरह हिन्दुस्तान पर टूट पड़ा और दिल्ली से अपार संपत्ति और हजारों कैदियों के साथ-साथ फीरोजशाह कोटले के अजायबघर के दुर्लभ पशु-पक्षियों को लेकर अपने देश समरकंद चला गया।

मुगलों के काल में कबूतर पालना एक फन बन गया था। बादशाह, शहजादों नवाबों और अमीरों से लेकर छोटे-बड़े तक में कबूतर पालने का शौक इतना बढ़ गया था कि बहुत-सा वक़्त और लाखों रुपया सिर्फ कबूतरबाजी पर खर्च किया जाने लगा। शहजादा सलीम (जहांगीर) और मेहरुनिन्नसा (नूरजहां) की मुहब्बत कबूतर ही की वजह से परवान चढ़ी थी। कहा जाता है कि एक दिन किले में सलीम मीना बाजार की सैर कर रहा था, उसके हाथों में शीराजी कबूतरों का एक जोड़ा था। किले के बाग में एक बहुत खुशनुमा फूल खिला देखकर उसने उसे तोड़ना चाहा। उसे सामने से एक अल्हड़, शोख और हसीन लड़की अठखेलिया करती हुई आती दिखाई दी। सलीम उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया और उस सुंदरी के हाथों में दोनों कबूतर थमाकर बोला कि जरा हमारे कबूतर पकड़ लीजिए, हम वह फूल तोड़कर अभी आए। जब शहजादा लौटकर आया तो उस हसीन लड़की के हाथ में, जो मेहरुन्निसा ही थी, सिर्फ एक कबूतर देखकर सटपटा गया। उसने लड़की से पूछा-

देखो इधर ऐ महलका

मेरा कबूतर दूसरा

जल्दी बताओ क्या हुआ

झट भोलेपन से कह दिया

सरकार वह तो उड़ गया

बोला कि है क्यूं कर उड़ा

ऐसा तो हो सकता न था

झट दूसरी मुट्ठी जो थी

कुछ मुस्कराकर खोल दी

यूं उड़ गया आली जनाब

यह सादगी उफ रे गजब !

शहजादे का दिल आ गया

फिर जानते हो क्या हुआ ?

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