लाहौरी दरवाजे के दक्षिण में कोई डेढ़ मील के अंतर पर बूचड़खाने के पास यह दरगाह बहुत विख्यात है, जो वास्तव में फीरोज शाह के बेटे फतह खां की कब्र है और यह 1374 ई. में बनाई गई। इस दरगाह में हजरत मोहम्मद साहब के चरण का चिह्न लगा हुआ है, जिसे हजरत मखदूम मक्का से दिल्ली अपने सिर पर रखकर लाए थे। 1374-75 ई. में जब फतह खां की मृत्यु हुई तो यह कदम उनकी छाती पर लगा दिया गया और उसके गिर्द मदरसा, मकान और मस्जिद बना दी गई तथा चारदीवारी के करीब एक बहुत बड़ा हौज बनाया गया। यह सारी इमारत पक्की बनी हुई है।
इसके सात दरवाजे हैं, जिनमें से दो अब बंद हैं। इमारत एक चबूतरे पर बनी हुई है, जो 78 फुट लंबा तथा 36 फुट चौड़ा था और साढ़े पांच फुट ऊंचा है। इसका सदर फाटक पूर्व में है। पूर्व और पश्चिम में पक्के दालान बने हुए हैं, जिनके कोनों पर चार बुर्जियां हैं। इन दालानों में फीरोज शाह तुगलक के कुटुंबियों की कब्रें हैं। यह मुसलमानों का तीर्थस्थान है। यहां हर वर्ष मेला लगता है और पंखा चढ़ता है।