कुतुब मीनार (qutub minar) में वैसे तो दिल्ली सल्तनत के समय का सबसे खूबसूरत स्मारक है लेकिन इसी प्रांगण में बने अलाई दरवाजे (alai darwaza) की वास्तुकला इस्लामिक वास्तुकला का अनूठा उदाहरण है। इतिहास की दृष्टि से इसका महत्व इसलिए भी खास है क्योंकि इसके निर्माण के बाद घोड़े के नाल की आकार की मेहराब और वास्तविक गुंबद शैली का आगाज हुआ। कुतुब मीनार के दक्षिण में स्थित इस फाटक का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने किया था। इसलिए इसे अलाई दरवाजा कहा जाने लगा। इस दरवाजे पर कुरान की आयते लिखे गए हैं। इसका निर्माण सन 1311 में हुआ था। वास्तुकला के नजरिए से इस दरवाजे ने भारत में इस्लामिक वास्तुकला की नींव थी, क्योंकि इससे पहले स्मारकों के दरवाजों में मेहराब का इस्तेमाल नहीं हुआ करता था। वास्तुकार राजीव वाजपेयी बताते हैं कि दिल्ली सल्तनत के समय सबसे पहले घोड़े की नाल की तरह दिखने वाले मेहराब बनाया गया। यह पहला ऐसा स्मारक है, जिसके निर्माण और अलंकरण में इस्लामी सिद्धांतों का सही तौर पर इस्तेमाल किया गया है। इन विशेषताओं में सबसे महत्वपूर्ण है, स्मारक के ऊपर बना गुंबद और इसकी मेहराबों में कमल कली के झब्बे हैं।
लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित यह शानदार प्रवेश द्वार सभी किनारों पर मेहराबी द्वारों से सजाया गया है। 17.2 वर्ग मीटर में बना इस स्मारक में आठ खंभे हैं। इस स्मारक के उत्तर में स्थित मेहराब अर्द्ध गोलाकार जबकि दूसरी ओर घोड़े की नाल की तरह डिजाइन की गई है। इस स्मारक के अंदर की सजावट संगमरमर के पत्थरों से की गई है। अंदर बने झरोखे की नक्काशी और जाली का काम भी बेहद खूबसूरत है। यह कहना गलत नहीं होगा कि मुगल वास्तुकला को भी दिल्ली सल्तनत के समय बनी इस इमारत से प्रेरणा मिली।