सन 1638 में शाहजहां (shahjahan) ने आगरा (agra) से हटाकर अपनी राजधानी दिल्ली (delhi)लाने की सोची तो उन्होंने यहां शाहजहांनाबाद (shahjahanabad) के निर्माण काम शुरू करवाया। सन 1639 में लालकिले (red fort) का दुर्ग बनाने का कार्य शुरू किया गया। लालकिले की चारों ओर की दीवारों का निर्माण नौ साल में पूरा हुआ। यह बताया जाता है कि इसके निर्माण में 50 लाख रुपए खर्च हुए। लालकिले के पूर्व अधीक्षक और पुरातत्वविद के राजदान ने बताया कि शाहजहां ने दीवारों और दरवाजों को बनाने के समय सुरक्षा के साथ साथ इसकी भव्यता भी खास खास ख्याल रखा था। इस प्राचीर को इस तरह डिजाइन किया गया जिससे युद्ध के समय दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब दिया जाए। उन्होंने बताया कि लालकिले की प्राचीरें 2.41 किलोमीटर की परिधि में निर्मित है। इन प्राचीर की उंचाई शहर की ओर 33.5 मीटर है और नदी के साथ साथ 18 मीटर ऊंची है। प्राचीरों के बाहर की ओर एक खंदक( बड़ा गढ्डा) है जो प्रारंभ में नदी से जुड़ी हुई थी। किले की पूर्वी दिशा में महल स्थित है, जबकि दो भव्य तीन मंजिले मुख्य प्रवेश द्वार पर स्थित हैं। इस किले के मुख्य प्रवेश द्वार को लाहौरी दरवाजे (lahori gate) के नाम से जाना जाता है। यह दरवाजा चांदनी चौक की तरफ खुलती है।
इस मार्ग पर महलों तक जाने के लिए एक छत्तादार मार्ग है, जिसकी बगल में मेहराबी कमरे हैं जिन्हें छत्ताचौक (chatta chowk) कहते थे। अब इनकों दुकानों के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ दरियागंज की तरफ तरफ दिल्ली दरवाजा है जिसके बगल में दो हाथियों की मूर्तियां है, जिन्हें लॉड कर्जन ने 1903 में उसी स्थान पर नए ढंग से लगवाया, जहां बहुत पहले इन्हें औरंगजेब ने नष्ट कर दिया था। अन्य भागों में राजदरबारियों और परिजनों के रिहायशी आवास थे। इन दोनों फाटकों के सामने बाद में औरंगजेब द्वारा अतिरिक्त किलेबंदी करवाई गई। अन्य किनारों की ओर तीन अन्य प्रवेश द्वार है जिन्हें काफी हद तक अब बंद कर दिया गया है। लाल किले के उत्कृष्ट कारीगर हमीद और अहमद थे।