1857 की क्रांति: बागी सिपाहियों का हमला अब रिज पर कब्जा किए अंग्रेजी फौजों पर कम होने लगा था। दिल्ली शहर से हमले न सिर्फ ज़्यादा नाकाम होते जा रहे थे बल्कि कम भी होते जा रहे थे। जैसा कि हीं ग्रेटहेड ने 4 अगस्त को अपनी बीवी को लिखा कि
‘2 तारीख से किसी ने एक निशाना भी नहीं लगाया है, मोचों से भी। और अगर वह फिर हमला करेंगे, तो यह ढीठपन के अलावा कुछ नहीं होगा।
जैसे-जैसे हमले कम होते गए अंग्रेजों का आत्मविश्वास बढ़ता गया और वक्त गुजारने के लिए दूसरे बहलाव ढूंढ़े जाने लगे। कुछ लोगों ने रिज के पीछे यमुना की नहर में मछलियां पकड़ना शुरू कर दिया और कुछ क्रिकेट, फुटबॉल और छल्ले फेंकने के खेलों में लग गए। यहां तक कि एक टट्टू दौड़ भी की गई। ग्रेटहैड रोज़ाना घुड़सवारी के लिए कैंप की हदों से बाहर जाने लगा क्योंकि अब वह महसूस कर रहा था कि वह ‘काफी दूर तक सुरक्षित जा सकता था’ । उसने अपनी बीवी से कहा कि ‘कैंप के बाहर मरे हुए जानवरों की सड़ती बू से सारा मजा किरकिरा हो जाता है’।'” अब खाना और आरामदेह चीजें भी ज़्यादा मात्रा में मिलने लगी थीं।
सबको काफी गोश्त भी मिलने लगा। पंजाब से अंग्रेज-समर्थक राजाओं की तरफ से बराबर गल्ला भेजा जा रहा था। दिल्ली के उत्तर में एक दिन के मार्च की दूरी पर जींद का राजा राई में एक ब्रिटिश आपूर्ति बेस की सुरक्षा कर रहा था। अम्बाला के सौदागर पीक एंड एलेन ने उन लोगों के लिए जो खरीद सकते थे, एक दुकान खोल दी थी, जिसमें दांतों के मंजन, चॉकलेट, कागज, पेन और अच्छी शराब जैसी दुर्लभ चीजें मिलती थीं, हालांकि उनकी ब्रांडी जो आठ रुपए प्रति बोतल थी, ज्यादातर लोगों की पहुंच से बाहर थी।
सबसे ज्यादा लोगों की खरीदने की हैसियत सिर्फ बीयर की बोतल थी, जो पारसी सौदागर जहांगीर एंड काउसजी की दुकान पर मिलती थी और जो पीक एंड एलेन की काट में ‘बेहतरीन अंग्रेजी बोतलें सिर्फ पंद्रह रुपए दर्जन देते थे।” अब भी हैजे से रोजाना कई मौतें हो रही थीं और रिज के करीब सड़े हुए जानवरों की बदबू पहले से कही ज़्यादा तेज थी, लेकिन फिर भी वहां लोगों में आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा था कि अब तूफान का रुख बदल गया है और लोगों में महीने भर पहले से कहीं ज्यादा जोश था।