1857 की क्रांति: 14 सितंबर को अंग्रेजों और क्रांतिकारियों केबीच निर्णायक जंग होनी थी। जंग के दरम्यान जीनत महल शहर के दूसरी तरफ अपनी लाल कुएं वाली हवेली में थीं और अंग्रेजों से मौलवी रजब अली-जो होडसन के गुप्तचर विभाग का प्रमुख था, के जरीये बातचीत में मसरूफ थीं।
दरअसल, 4 अगस्त से ही जफर की मलिका अंग्रेजों से बाकायदा संपर्क कायम कर चुकी थीं और उनको इस उम्मीद में पैगाम भिजवा रही थीं कि वह कुछ शर्तों पर उनसे सुलह कर लें। होडसन बराबर यह खबरें गवर्नर लॉरेंस के गुप्तचर विभाग के बड़े अफसर सर रॉबर्ट मोंटगोमेरी को लाहौर में भेज रहा था कि जीनत महल ‘ब्रिटिश जासूसों के साथ साजिश कर रही हैं’ और ‘पूरी तरह अंग्रेजों के हक में हैं’ और उन्होंने ‘शहर पर कब्ज़ा करने के लिए अपनी मदद की पेशकश की है’। यहां तक कि वह ‘कश्तियों का पुल उड़वाने’ पर भी तैयार हैं।
25 अगस्त को, जिस दिन निकल्सन ने बख्त खां का पीछा किया था, उस दिन ज़ीनत महल ने एक संदेश हर्वी ग्रेटहैड को भिजवाया, जिसमें उन्होंने बादशाह पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की पेशकश की थी। लेकिन ग्रेटहैड ने विनम्रतापूर्वक जवाब दिया कि ‘हम उनके लिए निजी रूप से शुभकामनाएं रखते हैं, और हमारी औरतों और बच्चों से कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन मुझे इजाजत नहीं है कि मैं किले में रहने वालों से कोई बातचीत कर सकूं।
लेकिन जीनत महल ने कभी इंकार कुबूल करना नहीं सीखा था, इसलिए उनको अब भी उम्मीद थी कि अगर वह खुद होडसन से सीधे तौर पर संपर्क साध सकें, तो उनको ज्यादा कामयाबी होगी। यह बड़ा सोचा-समझा फैसला था क्योंकि होडसन को साजिश बहुत पसंद थी। हालांकि उसे कोई अधिकार नहीं था–उसने अपनी मर्जी से यह पत्राचार जारी रखा।
9 सितंबर को ज़ीनत महल ने मौलवी रजब अली से अपनी लाल कुएं वाली हवेली में एक और मुलाकात की, और 13 सितंबर तक हालांकि उनका पलड़ा कमज़ोर पड़ रहा था क्योंकि ब्रिटिश हमलावर हर लम्हे करीब आते जा रहे थे, फिर भी वह अपने पुराने ख़्वाब नहीं भुला पाई थीं। वही मकसद जिसके लिए उन्होंने इतने सालों अनथक मेहनत की थी।
होडसन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा हैः “अपनी मदद के एवज में जीनत महल की मांग है कि उनका बेटा वलीअहद माना जाए और उसको तख़्तो-ताज की विरासत की जमानत दी जाए, और जहां तक बादशाह का सवाल है उनका मुकाम अपनी जगह पर कायम रहे, और उनका पिछले पांच महीनों का खर्चा, जो मई से गदर की वजह से रुक गया था फौरन अदा किया जाए। “मैंने बहुत मुश्किल से उनको इस ख़्वाब से जगाया और उनको उस समय बादशाह की असली हालत से आगाह किया और बताया कि यह बिल्कुल नामुमकिन है कि वह या उनका कोई वारिस उस तख्त पर कभी भी बैठ सकेगा, जो उन्होंने जब्त करा दिया है।
जब आखिरकार वह यह समझ पायीं कि न सिर्फ उनकी आजादी बल्कि बादशाह और उनके बेटों की जान को भी खतरा है, तो मैं उनके पिता और बेटे की जान बचाने की गारंटी देकर अपने मक्सद में उनका साथ पाने में कामयाब हुआ। सिर्फ इस शर्त पर वह बादशाह पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने पर तैयार हुई। लाल कुएं में यह खुफिया बातचीत चल रही थी।