1857 की क्रांति: पत्रकार मुहम्मद बाकर ने दिल्ली की स्थिति को लेकर चेताया था। उन्होंने अपने अखबार में क्रांतिकारियों की नाकामी और कर वसूलने में अस्थिरता पर लिखा था। चेताया था कि स्थिति दिल्ली के लिए अच्छी नहीं होगी। जैसे-जैसे जून और जुलाई गुजरते गए और अगस्त का महीना आया इस भविष्यवाणी की सचाई सही साबित होती गई। शहर वालों में भूख और प्यास बढ़ती गई।
जून में ही अंग्रेजों ने यमुना की नहर का बहाव शहर में जाने से रोक दिया था। इसलिए अब पानी सिर्फ शहर के अंदर के गदले कुंओं और पूर्व की तरफ नदी का रह गया जहां भिश्ती और स्नान करने वाले अंग्रेजों की गोलियों का निशाना बन सकते थे। इसके बावजूद बहुत से लोग पानी भरने आते और दरिया कि किनारे बैठकर मछली पकड़ते।
हालांकि खुले मैदान में गोली लगने का खतरा था। लेकिन ताजा मछलियों के लालच में वह यह खतरा भी मोल ले लेते। खाने की हालत और भी खस्ता थी। जून ही से भूखे शहरियों, क्रांतिकारियों और सिपाहियों की खाने और गुजारे की बेशुमार दर्खास्तों की भरमार थी। और सारे जासूस अंग्रेजों को दिल्ली की सड़कों पर भूख से बेहाल लोगों खबरें सुना रहे थे।
7 जून से ही शाही किले के कर्मचारी तक शिकायत करने लगे थे कि उनको एक महीने से राशन नहीं मिला है। 12 जून को डिप्टी कोतवाल ने अपने मातहतों को लिखकर मिन्नत की कि वह हरियाणा की नई रेजिमेंट के लिए कुछ खाना मुहैया करें जो उसी वक्त दिल्ली में दाखिल हुई थी।
उस खत के नीचे यह जवाब लिखा है कि “सूचित किया जाता है कि दुकानों में कुछ नहीं बचा है, न आटा न दाल, कुछ नहीं। हम क्या कर सकते हैं? 15 जून तक विभिन्न रेजिमेंटों के अफसर किले में आकर शिकायत करने लगे थे कि उनके सिपाही अंग्रेजों से भूखे पेट नहीं लड़ सकते और उन्होंने वापस जाना शुरू कर दिया है, और ‘वह लड़ाई के खात्मे से पहले ही भूख के कारण चले जाने को मजबूर हैं।