व्यापारियों ने बादशाह को लिखे पत्र में सुनाई अपनी आपबीती
1857 की क्रांति: बगावत के समय सारे शहर में सिपाहियों की मौजूदगी भी लोगों के लिए एक बड़ी समस्या थी। इस दौरान शहर का सारा कारोबार बंद था। जुलाई में शाही जागीर के दारोगा रतन चंद ने बहुत खूबसूरत फारसी में लिखा एक खत बहादुर शाह जफर को भेजा और उनसे गुजारिश की कि वह चांदनी चौक की रौनक को फिर से बहाल करें।
लिखा कि “फौज के घुड़सवारों ने चौराहे की दुकानों पर कब्जा कर लिया है और अपने घोड़े वहां बांध दिए हैं। इसलिए बहुत से थोक व्यापारी, जो दुकानें किराये पर लेते थे वहां से भाग गए हैं। और जो रह गए हैं, वह भी अपनी दुकानें खाली कर रहे हैं। इसका मतलब है कि अब किराये की कोई आमदनी नहीं रही और वह दुकानें भी जिनकी हुकूमत ने मरम्मत करवाई थी, अब खाली पड़ी हैं।
अमीर साहूकार मुसीबत झेलते रहे। पहली जुलाई को साझेदारों जुगल किशोर और शिव प्रसाद ने शिकायत की कि उनके पास रोज घुड़सवार दस्ते के सिपाही आते हैं, “जो हमें लूटने, धमकाने या गिरफ्तार करने आते हैं। पिछले तीन दिन से हम लोगों को छिपना पड़ गया है, और हमारे कर्मचारियों और नौकरों को सताया और परेशान किया जा रहा है। अब घबराहट और परेशानी के आलम में हम अपने घरों से भी भाग रहे हैं। हमारी इज्जत और साख सब खाक में मिल गई है।
शहर के मामूली व्यापारी तक जान गए थे कि उनके इलाके में कहीं भी सिपाहियों की मौजूदगी का मतलब था कि लोग डर के मारे बाहर निकलकर उनका सामान नहीं खरीदेंगे। 20 जून को चांदनी चौक पुलिस चौकी के थानेदार हाफिज अमीनुद्दीन ने कोतवाल को लिखा किः “आनंदी नाम के लकड़ी बेचने वाले एक आदमी ने गुजारिश की है कि पिछले ग्यारह दिन से एक घुड़सवार रेजिमेंट बाग बेगम में ठहरा हुआ है, जहां उसकी दुकान है। नतीजतन डर के मारे उसकी दुकान पर कुछ भी खरीदने कोई नहीं आता है और वह अपनी आमदनी गंवा रहा है। इसलिए मेरी आपसे गुजारिश है कि इस दुकानदार को अपनी दुकान वहां से हटाने की इजाजत दी जाए।