bahadur shah zafar

1857 की क्रांति: बहादुर शाह जफर को निर्वासन की सजा सुनाई गई। जफर समेत परिवार के सदस्यों और कुछ नजदीकियों के साथ जफर को जेलर ओमैनी के निर्देशन में ले जाया गया। विलियम डेलरिंपल अपनी किताब आखिरी मुगल में लिखते हैं कि सफर जफर के साथियों को भी बहुत पसंद आ रहा था, और वह सब बहुत खुश नज़र आते थे। जॉर्ज वैगनद्राइवर ने डेल्ही गजट में रिपोर्ट दी, “कैदी हर तरह से खुश हैं, और कनात के पीछे औरतें खूब हंसती-बोलती सुनाई देती हैं, जैसे उन्हें दिल्ली छोड़ने का कोई खास गम नहीं है’।

यह स्थिति उसके बिल्कुल विपरीत थी, जो उनकी दिल्ली में कैद के आखरी दिनों में थी, जब अंग्रेजों से मिलने वाले बेइंतेहा अपमान सहने के अलावा, शाही खानदान ने आपसी झगड़ों से अपनी मुसीबतें और भी बढ़ा ली थीं। ओमैनी का कहना है कि रवानगी से पहले जीनत महल जवांबख्त को अपने पिता के हरम की एक औरत पर फिदा हो जाने के लिए तेज आवाज में बुरा-भला कहती थीं। वह अपने खानदान की बची-खुची मामूली रकम भी शराब की बोतलें मंगवाने के लिए गार्डों को रिश्वतें देने में उड़ाने लगा था।

ओमैनी को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उसने सॉन्डर्स को लिखाः “भूतपूर्व शाही खानदान की नैतिकता और घरेलू अर्थव्यवस्था का क्या हाल हो गया है! मां बेटे में दुश्मनी, बेटा अपने बाप की रखैल से संबंध बनाना चाहता है और अपने मजहब के खिलाफ काफिरों की शराब खरीद रहा है और पी रहा है।

सफर शुरू करने से पहले ज़ीनत महल की अपनी पुरानी रकीब और दुश्मन ताज बेगम से भी बहुत ज़ोरदार बहस हुई थी। ताज बेगम को गदर से पहले तीन बरस कैद में रखा गया था क्योंकि उन पर इल्जाम था कि वह ज़फ़र के भतीजे मिर्ज़ा कामरान के साथ प्रेम संबंध बनाए हुए थीं।

वह दिल्ली के उन बहुत कम लोगों में से थीं जिनके हालात गदर की वजह से बेहतर हो गए थे। ज़ीनत महल से बहस के बाद, ताज ने फौरन ऐलान कर दिया कि वह उनसे या ज़फर से कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहतीं और वह उनके कमरे से दूर बरामदे के दूसरे कोने में चली गईं।

उन्होंने ओमैनी से कहा, ‘मेरा बादशाह से कोई वास्ता नहीं है। मेरा उनसे कोई बेटा नहीं, और मैं यहां से हिलने वाली नहीं हूं।’ ‘बहुत अच्छा, ताज बेगम,’ ओमैनी ने जवाब दिया, ‘लेकिन आपको बादशाह के कमरों में जाना ही पड़ेगा। अगर आप अपनी मर्जी से नहीं जाएंगी तो मुझे आपको वहां ज़बर्दस्ती ले जाना पड़ेगा।’ ‘तुम मुझे मार सकते हो, मगर मैं हरगिज नहीं जाऊंगी,’ ताज ने जवाब दिया। ओमैनी ने सॉन्डर्स को लिखा कि ‘बादशाह का ग्रुप उनको बहुत नापसंद करता है, इसलिए वह बड़े झंझट का कारण होंगी’।

सफर के शुरू के चंद हफ्तों तक तो सफर की लज्जत और अपने ही महल के पिछवाड़े एक छोटी सी कोठरी की कैद से रिहाई की खुशी ने शाही खानदान के विभिन्न झगड़ों को कुछ कम कर दिया। लेकिन जब वह लोग इलाहाबाद के करीब पहुंचे तो फिर से तनाव बढ़ गया और वहां के किले पहुंचने तक (जहां जफर के भाई मिर्जा जहांगीर को निर्वासित किया गया था) जो अब अंग्रेजों के कब्जे में था, ताज बेगम के नेतृत्व में आधे लोगों ने-जिनमें जफर की रखैले और मिर्जा जवांबख्त की सास और साली भी शामिल थीं-निर्वासन के सफर में आगे जाने के बजाय वापस दिल्ली जाने का फैसला किया। 31 लोगों में से 15 ने जफर के साथ आगे जाने का फैसला किया।

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