क्रांतिकारियों ने कैसे अंग्रेजी फौजों को चारो तरफ से घेरा
1857 की क्रांति: बादशाह बहादुर शाह जफर ने बरेली फौज के बख्त खां को फौज का कमांडर नियुक्त कर दिया। बख्त खां का फौजी प्रशासन प्रभावशाली था। दुश्मन को दोनों तरफ से घेरने की कोशिश। 3 जुलाई को फौज की एक टुकड़ी को यमुना के किनारे-किनारे अलीपुर तक भेजना-आंशिक रूप से नाकाम रही क्योंकि जब वह गाड़ियों में अंग्रेजों के रसद के स्थल को आग लगाकर वापस आ रहे थे, तो अंग्रेजों ने उन्हें देख लिया और उन पर छापा मारा, लेकिन कम से कम यह एक नई चाल थी।
साथ ही, बख़्त खां ने एक और नई ‘बारी’ प्रणाली लागू की, जिससे अंग्रेजों पर निरंतर हमले किए जाएं ताकि वह संभल न सकें। अंग्रेजों के जासूसों ने उन्हें इस नए तरीके के बारे में आगाह किया और बताया कि ‘बख्त खां ने अपनी फौज को तीन हिस्सों में बांट दिया है, ताकि कम से कम एक हिस्सा हर रोज लड़ता रहे’।
इन नए हमलों ने फौरन अपना असर दिखाया। रिचर्ड बार्टर लिखता है कि बख़्त खां की ‘इस प्रणाली की वजह से हम एक पल भी खड़े नहीं रह सकते थे… बिल्कुल थके-हारे होने और राहत मिलने की कोई उम्मीद न होने के कारण, कुछ सिपाही तो सामने आकर दुश्मनों पर झपट पड़ते और जान-बूझकर मारे जाते ताकि कम से कम उन्हें इस जिंदगी से जल्द निजात मिले। उनका ख़्याल था कि मौत तो देर-सवेर आनी ही है, तो अगर जल्दी मर जाएं तो बेहतर है।