क्रांति के दरम्यान ही इस अंग्रेजी अखबार ने लाल किले को लेकर छापा ये अजीबो-गरीब वाकया

1857 की क्रांति: अंग्रेज अफसर वैगनट्राइबर दिल्ली से लाहौर चला गया था। लाहौर से वो एक नया दिल्ली गजट निकाल रहा था, जिसका नाम उसने दिल्ली गजट एक्स्ट्रा रखा था। उसका मकसद था कि वह दिल्ली के बचे हुए अंग्रेजों को प्रोत्साहन दे।

उसने लिखा कि ‘आओ अब आने वाले हालात पर एक नजर डालें। और उस दिल्ली की कल्पना करें जिस पर जल्द ही ब्रिटिश फौजें कब्ज़ा करने वाली हैं। कमांडिंग अफ्सर मुगलों के लाल किले में बैठे होंगे और मुगल बादशाह के गले में रस्सी का हार पड़ा होगा, जो उसके ताज की जगह होगा।

उसकी ज़िंदगी ब्रिटिश इंसाफ के रहमो-करम पर होगी। और आगे क्या? हमारा जवाब यह है: दिल्ली को मुकम्मल खामोशी के गढ़े में दफ़्न कर दो-स्तब्ध, स्तब्ध उसकी दीवारों के अंदर मौत की खामोशी। और बाहर निरंतर इंसाफ अपना फर्ज अदा करता रहेगा, इसकी पकड़ में हर उस देसी की जिंदगी होगी, जिसने इस भयानक तूफान में हिस्सा लिया था, और वह उसे अपनी वेदी पर कुर्बान कर देगा।

5 अगस्त को रिज पर यह खबर मिली कि काफी फौजी इम्दाद रास्ते में है। ऐसा करने के लिए जॉन लॉरेंस को पंजाब से लगभग सारे ब्रिटिश सिपाहियों को हटाना पड़ा जोकि एक बहुत बड़ा जुआ था कि पंजाब में कोई गड़बड़ नहीं होगी। एक मील लंबी घेराबंदी की गाड़ियों की कतार जिसको फीरोजपुर में हथियारों और तोपों से लादा गया था, अब चल पड़ी थी, और ग्रांड ट्रंक रोड से आहिस्ता आहिस्ता आ रही थी, जबकि तेजरफ़्तार जंगम दस्ता अम्बाला पहुंच गया था और बस कुछ ही दिनों में फील्ड फोर्स की मदद को पहुंचने वाला था।

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