जफर को इस जगह रखा गया था कैद में

ओमैनी को नियुक्त किया गया जफर का जाती जेलर, लेकिन क्यों

1857 की क्रांति: अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। अब लखनऊ में क्रांति को दबाने के लिए फौज भेजी जाने वाली थी। फौज के लखनऊ जाने से दो दिन पहले ओमैनी को सॉन्डर्स से आदेश मिला था कि उसे बहादुर शाह जफर का जाती जेलर नियुक्त किया जाता है।

उसका पहला काम था कि भूतपूर्व बादशाह के लिए उनके किले के अंदर कोई सुरक्षित कैदखाना ढूंढ़े। उसने अभी बाजार के पिछवाड़े एक मुनासिब घर तलाश किया ही था जिसमें पहले कोई कमरुत्बा शहजादा मिर्ज़ा नीली रहता था–कि उससे कहा गया कि उसे जफर और उनके अपने खानदान के अलावा शाही हरम की 82 औरतों, 47 बच्चों और दो ख्वाजासराओं की भी जिम्मेदारी संभालनी होगी। उन सबको तभी हुमायूं के मकबरे से चौदह बैलगाड़ियों में भरकर किले लाया गया था और उनको ओमैनी की ‘सख्त निगरानी’ में रखा गया।” अगले दिन, इससे पहले कि वह सोच भी पाता कि इतने लोगों के खाने और सफाई वगैरा की व्यवस्था कैसे कर पाएगा, उसे खबर मिली कि उसके शाही कैदियों में हैजा फैल गया है और अगली ही रात एक बेगम हैजे से मर भी गईं।

जफर और उनके खानदान का नया निवास बहुत साधारण और गंदा था। बादशाह का नजारा करने के लिए आने की अपनी बारी आने के बाद मिसेज कूपलैंड ने लिखा, “हम एक छोटे, गंदे, नीचे कमरे में दाखिल हुए तो वहां एक नीची चारपाई पर एक दुबला सा बूढ़ा आदमी गंदे से सफेद कपड़े पहने और बोसीदा सी रजाई में लिपटा झुका हुआ बैठा था। हमारे आते ही उसने अपना हुक्का अलग रख दिया, और वह शख्स जिसे पहले हमेशा लगता था कि उसके सामने किसी का बैठना भी बेअदबी है, अब हमें बड़ी बेचारगी से सलाम करने लगा और कहने लगा कि उसे हमसे मिलकर ‘बड़ी खुशी’ हुई।

“वह एक छोटे से कमरे में बंद हैं जहां सिर्फ एक चारपाई पड़ी है,” किसी और मुलाकाती का कहना है। “और उन्हें खाने के लिए दिन में सिर्फ दो आने मिलते हैं। सारे अफसर और सिपाही उनसे बहुत बेइज़्ज़ती का सुलूक करते हैं। हालांकि मि. सॉन्डर्स का उनके साथ बर्ताव सभ्य है। उनकी बेगमात और शाहजादियां भी उनके साथ कैद हैं। यह बेचारी बदकिस्मत औरतें जिनका कोई कुसूर नहीं है, वह भी अफसरों और सिपाहियों की नजरों का निशाना हैं, जो जब चाहें उनके कमरों में जा सकते हैं। सबसे निचले वर्ग की हिंदुस्तानी औरत के लिए भी यह बहुत शर्म की बात है। जब भी कोई  आता, तो यह बेचारियां दीवार की तरफ मुंह फेर लेतीं।

जफर को अपने हकीम को बुलाने की भी इजाजत नहीं थी, जिनके लिए वह हर वक्त पूछते रहते थे, और न ही उनका धोबी और हज्जाम आ सकता था। जॉन लॉरेंस तक ने जो उस दौर में अंग्रेजों की ज़्यादतियों के बीच एक उदार आवाज था, सॉन्डर्स से कहा कि वह भूतपूर्व बादशाह पर ज़्यादा मेहरबानी न दिखाए। ‘,’ उसने दिसंबर में लिखा बादशाह या उनके खानदान का कोई भी व्यक्ति हमारे हाथों बेहतर सुलूक का हकदार नहीं है।

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