1857 की क्रांति: दिल्ली पर दोबारा कब्जे के बाद अंग्रेजों ने तटस्थता को भी अपराध माना और एक-एक करके बहादुर शाह जफर के दरबार के कई नवाब और राजा को पकड़ा। इन्हें कैद किया गया और फिर उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी दे दी गई। झज्जर के नवाब ने बड़ी बहादुरी का परिचय दिया। बल्लभगढ़ के राजा की दास्तान और भी दर्दनाक थी।

हिंदू होने के नाते उनकी हमदर्दी उतनी ही अंग्रेजों के साथ थी जितनी कि मुसलमान बादशाह के साथ। वह बहुत शिष्ट खूबसूरत थे।

यह उन राजा की बदकिस्मती थी कि उन्हें ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जहां हर रास्ते में खतरा था और फिर एक ऐसे मुकद्दमे का सामना करना पड़ा जिसमें हर उस काम की सजा मौत थी जो हमारी हुकूमत के खिलाफ किया गया।

उनके आखरी अल्फाज जो उन्होंने जज के सामने कहे, बहुत मर्मस्पर्शी थे। उन्होंने कहा था कि-

‘मैं एक दिव्य पेड़ की हरी-भरी शाखा पर सुरक्षित बैठा था, और मेरे अपने ही काम ने उस डाली को काट डाला जिस पर मैं आराम कर रहा था’।

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