1857 की क्रांति: दिल्ली पर दोबारा कब्जा करने के बाद अंग्रेजों का इरादा सिर्फ शाही खानदान को ही गिरफ्तार करके उन पर मुकद्दमा चलाने का नहीं था। गदर के दौरान ज्यादातर स्थानीय जमींदार भी बीच में टंगे रहे थे और किसी एक का समर्थन करने के बजाय दोनों पक्षों को खुश रखने की कोशिश में लगे रहे थे। लेकिन अंग्रेजों ने तटस्थता को भी अपराध माना और एक-एक करके जफर के दरबार के कई नवाब और राजा भी पकड़े गए, कैद हुए और फिर उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी दे दी गई।
मिर्जा गालिब के दोस्त नवाब मुजफ्फरुद्दौला अलवर में अपने दो रईस दोस्तों के साथ पकड़े गए और उनको गुड़गांव में फांसी दे दी गई ‘क्योंकि वहां के कलक्टर ने कहा कि उन्हें दिल्ली भेजने की कोई जरूरत नहीं है, और इसलिए उन्हें वहीं फांसी दे दी गई’।
शीया लीडर नवाब हामिद अली खां जिन्होंने जहीर देहलवी के खानदान के साथ दिल्ली छोड़ी थी, ढूंढ़कर करनाल के पास पकड़ लिए गए। हकीम मुहम्मद अब्दुल हक जो राजा बल्लबगढ़ के एजेंट थे, और नवाब मुहम्मद खान, जो मिर्ज़ा खिजर सुल्तान के मुख्तार थे, जिन्होंने हिंडन और बदली की सराय में बागी फौज की एक टुकड़ी का नेतृत्व किया था, दोनों को ‘नवाब झज्जर के इलाके में पकड़ा गया और मुकद्दमे के लिए दिल्ली लाया गया। जहां 25 नवंबर को उन्हें ‘कानून की सबसे सख्त सजा मिली’।
फर्रुखनगर के नवाब को भी उनके महल से लाया गया। वह अफीम के रसिया थे, इसलिए उन्हें ओमैनी की सख्त जेल में अफीम न मिलने से सख्त तकलीफ हुई। बाद में उन्हें भी फांसी दे दी गई। थियो मैटकाफ झज्जर के नवाब को गिरफ्तार करने के लिए खुद गया, जिन्होंने गदर के पहले हफ्ते में उसे पनाह देने से इंकार कर दिया था।
ओमैनी नवाब के दबदबे और बहादुरी को देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उसने नवाब को ‘एक अच्छे दिखने वाले, मजबूत और काफी खूबसूरत आदमी 10 लिखा है। जब उनकी मौत की खबर सुनाई गई, तो भी उस पर बहुत असर हुआ: ‘जब उनके दो बेटों ने उन्हें देखा, तो दोनों छोटे-छोटे बच्चे बहुत रोये। यह बहुत दर्दनाक दृश्य था… मुझे नवाब पर बहुत दया आयी। उन्होंने अपनी मौत की खबर बहुत सब्र के साथ सुनी और जब वह फांसी पर चढ़ने के लिए जा रहे थे, तो उनके सब नौकरों ने बहुत झुककर उन्हें सलाम किया।’
उन तमाम रईसों और कुलीनों को फांसी पर चढ़ाए जाने से विचलित होने वालों में ओमैनी अकेला नहीं था। एक और साक्षी, मिसेज म्यूटर, भी झज्जर के नवाब की इस साफगोई और तर्क से बहुत प्रभावित हुई कि ‘उन बदमाशों को जिन्होंने हमारे मुल्क पर आफत ढाई, हथियार और प्रशिक्षण इंग्लैंड ने ही दिया था, और यह कौन से इंसाफ की बात है कि आप चाहते हैं कि मैं अपने लोगों को आज्ञापालन के लिए मजबूर करता, जब आपके अपने प्रशासक और जज खुद अपने लोगों को ही इसके लिए मजबूर नहीं कर पाए।’
“नवाब ने फांसी के तख्ते पर अपनी मौत का स्वागत बड़े ही इत्मीनान, शराफत और बहादुरी से किया जिसको देखकर मेरे पति जो उनके हिफाजती दस्ते के प्रमुख थे बहुत प्रभावित हुए और उनके लिए उनके मन में बहुत सम्मान पैदा हो गया।