अप्रैल के आखिर तक मेरठ में भी बगावत शुरू हो गई। थर्ड लाइट इंफैंट्री ने भी कारतूस चलाने से इंकार कर दिया। उनके सब लीडरों को गिरफ़्तार कर लिया गया। मई के शुरू में नेटिव इंफैंट्री का पुराना तजुर्बेकार अफसर कैप्टन राबर्ट टाइटलर के करीबी दोस्त सूबेदार मेजर मंसूर अली को कोर्ट मार्शल की अध्यक्षता करने दिल्ली से बुलाया गया। जाने से पहले उसने रॉबर्ट से कहा, “सर, अगर मैं उन लोगों को मुज़रिम पाऊंगा तो सख्त से सख्त सजा दूंगा।”
और उसने ऐसा ही किया। 9 मई को मंसूर अली ने कम से कम पिचासी लोगों को दस साल कैद की सज़ा सुनाई। उस शाम मेरठ के बाज़ारों में इश्तहार लग गए जिनमें सभी सच्चे मुसलमानों को ईसाइयों के ख़िलाफ़ बगावत करने के लिए कहा गया।
दिल्ली में 10 मई 1857 का दिन निकला और यह बहुत गर्मी और धूल भरा दिन था। सख्त गर्मी का मौसम शुरू हो गया था और 1857 की गर्मियां कुछ ज़्यादा ही ख़ुश्क और कड़ी थीं।
आदत के मुताबिक, टाइटलर जोड़ा छावनी से मोटर में इतवार की सुबह को सेंट जेम्स चर्च की सर्विस के लिए रवाना हुआ। रास्ते में जो अम्बाला की राइफल ट्रेनिंग से लौटा था। टाइटलर ने वहां के सिपाहियों के हालात पूछे तो उसने कहा, “वहां सब लोग ठीक हैं और वापस आ रहे हैं।” एक अफ़सर मिला लेकिन रॉबर्ट फिर भी परेशान और चौकन्ना रहा। शाम को उसको सिपाहियों की लाइंस में डाकगाड़ी के आने का बिगुल सुनाई दिया जो अजीब बात थी क्योंकि सिपाही कभी डाकगाड़ी में सफर नहीं करते थे। “मेरे पति ने सोचा शायद हमारा सूबेदार मेजर मंसूर अली मुकद्दमा ख़त्म करके वापस आ रहा है। थोड़ी देर बाद एक बैरे ने सूचना दी कि मंसूर अली अभी नहीं आया है, लेकिन कुछ लोग मेरठ से लाइंस में अपने दोस्तों से मिलने आए हैं। मेरे पति को यह अजीब लगा लेकिन उन्होंने इस मामले पर बहुत ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।
टाइटलर दिल्ली में अकेला आदमी नहीं था जिसने दिल्ली में मेरठ से मुताल्लिक अजीबो-गरीब बातें महसूस कीं। चर्च जाते वक्त वह ज़रूर तारघर से गुज़रा होगा जो कश्मीरी गेट के बाहर सिविल लाइंस में था। वहां चार्ल्स टॉड और उसके दो जवान साथी ब्रेडिश और पिलकिंग्टन अपने मेरठ के तारघर के साथियों से गपशप कर रहे थे। उन्होंने बताया कि सजा सुनाए जाने के बाद से वहां बहुत हलचल है और लोगों में गुस्सा है। नौ बजे के बाद दोनों तारघर गर्मी की वजह से बंद हो गए।
जब टॉड दोपहर को आराम करने के बाद शाम को चार बजे दफ़्तर वापस आया तो उसने देखा कि मेरठ से कनेक्शन कटा हुआ था। वह समझा कि शायद तारों में कुछ ख़राबी है। कुछ तार यमुना के अंदर से जाते थे और चूंकि उनके ऊपर का सुरक्षा कवर अक्सर गल जाता था, इसलिए उसकी वजह से अक्सर परेशानी होती थी। उसने अपने मातहतों को भेजा कि मालूम करें कि क्या खराबी है। उनको यह देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि यमुना के पूर्वी किनारे के सब तार बिल्कुल ठीक थे। और वहां से उनको वापस टॉड को पैग़ाम भेजने में कोई मुश्किल नहीं हुई। इसलिए खराबी जरूर मेरठ की तरफ होगी। बहरहाल अब तक छह बज चुके थे और कुछ और करने के लिए काफ़ी देर हो चुकी थी। इसलिए टॉड ने सोचा कि कल सुबह वह खुद जाएगा और तार को ठीक कराएगा। फिर उसने दफ्तर बंद किया और अपने बंगले पर खाना खाने चला गया।
जब टॉड दफ्तर बंद कर रहा था तो जॉर्ज और एलिजाबेथ वैगनट्राइबर वहां से उस शाम उनके यहां एक मिलने वाला आया। असामान्य रूप से, वह दिल्ली गुज़र रहे। वह जेनिंग्स की शाम की सर्विस से वापस आ रहे थे । के एक रईस नवाब लोहारू जियाउद्दीन खान थे जो गालिब के रिश्तेदार थे और जिनके बाप एलिजाबेथ के पिता जेम्स स्किनर के बहुत करीबी दोस्त और बिजनेस पार्टनर थे। उनकी बेटी जूलिया का कहना है कि जॉर्ज और एलिजाबेथ देर तक बरामदे में बैठे बहुत संजीदगी से नवाब से बातें करते रहे ।
“मैं आमतौर पर हिंदुस्तानी मेहमानों के सामने नहीं आती थी इसलिए उनके आते ही मैं अंदर चली गई। लेकिन जब वह चले गए तो मेरे माता-पिता ने बताया कि वह मेरठ में सिपाहियों को गिरफ्तार किए जाने की वजह उन्हें ख़तरे से आगाह करने आए थे, कि ‘यह बहुत गलत बात हुई और हुकूमत को इसकी वजह से बहुत नुकसान होगा। मेरे माता-पिता ने सोचा कि फौरन सर थियो मैटकाफ को नवाब के अंदेशे से आगाह करना चाहिए और उन्होंने उसी रात उनको एक ख़त भेजा।
थियो उस वक्त अपनी छुट्टी पर जाने की तैयारियों में मसरूफ़ था । वह अगले दिन सुबह-सुबह कश्मीर रवाना होने वाला था, जहां उसे अपनी बहन जीजी और बेटे चार्ली से मिलना था। वह बहुत उदास और थका हुआ था, इसलिए उसने उस ख़त पर उस रात कोई कार्रवाई नहीं की।
जिस समय नवाब वैगनट्राइबर दंपती से मुलाकात कर रहे थे, उसी समय एक और ख़त साइमन फ्रेजर को भी दिया गया था जब वह सेंट जेम्स चर्च की शाम की सर्विस से बाहर निकल रहा था। लेकिन चूंकि इतवार का दिन था और साइमन का ध्यान यकीनन अपने मनपसंद साप्ताहिक कॉयर की तरफ़ था, इसलिए उसने भी उस ख़त को बगैर पढ़े अपनी जेब में रख लिया और अगले दिन सुबह तक उसको बिल्कुल भूला रहा।
उस ख़त में, जो फ्रेज़र ने सुबह को नाश्ते के वक़्त खोल कर पढ़ा, ख़बरदार किया गया था कि मेरठ के सिपाहियों ने बगावत का फैसला कर लिया है और उनका इरादा है कि वहां की सारी ईसाई आबादी को इतवार की रात को क़त्ल कर दिया जाए। फ्रेज़र यह पढ़कर दंग रह गया और फौरन अपनी बग्घी तलब की ताकि वह कुछ कर सके। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मेरठ के सिपाही न सिर्फ बग़ावत के लिए उठ खड़े हुए थे और कत्ले-आम कर चुके थे, बल्कि रात भर वह दक्षिण-पूर्व में घोड़े दौड़ाते रहे थे और उस वक़्त यमुना की कश्तियों के पुल से गुज़र रहे थे और अपने शहंशाह की तलाश में दिल्ली की दीवारों के अंदर दाखिल हो रहे थे।