1857 की क्रांति: बादशाह बहादुर शाह जफर ने बरेली फौज के बख्त खां को फौज का कमांडर नियुक्त कर दिया। 9 जुलाई को, अपने दिल्ली में दाखिले के एक हफ्ते बाद बख़्त खां ने अंग्रेज फौज को हमेशा के लिए रिज से हटाने के लिए एक संयुक्त हमला किया। यह हमला बड़े शानदार ढंग से सुबह पांच बजे शुरू हुआ, जिसमें तेज बारिश के दौरान, पीछे बहुत सी तोपों का एक दस्ता था। और फिर बख्त खां का अनियमित घुड़सवारों का दस्ता, जो वही सफेद यूनिफॉर्म पहने था, जो अंग्रेज फौज के अनियमित दस्ते पहने थे।

इस लिबास के असमंजस की वजह से शुरू-शुरू में वह अंग्रेजों के कैंप के बिल्कुल अंदर पहुंच गए। वह पहले बागी सिपाही थे, जो कामयाबी से ब्रिटिश हिफाजती व्यवस्था को तोड़ने में कामयाब हुए थे-अलार्म बजने से पहले! उन्होंने काफी तोपचियों को मार डाला और ब्रिटिश तोपों पर कब्जा करने ही वाले थे, जब उनको मारकर भगा दिया गया।

उसी वक्त बरेली फौज के दस्तों ने शहर से निकलकर किशनगंज की तरफ कूच किया ताकि ब्रिटिश फौज पर दायीं ओर से हमला करें। अंग्रेजों ने उन्हें वापस भगाना चाहा लेकिन बजाय वापस जाने के उन्होंने अंग्रेजों को लुभाते हुए उनकी सुरक्षित जगह से बाहर लाकर चट्टान की ढलान पर लड़ना शुरू कर दिया, जहां उनके पास छिपने की कोई जगह नहीं थी। लेफ्टिनेंट चार्ल्स ग्रिफिथ्स उनके इस मजबूत अनुशासन को देखकर बहुत प्रभावित हुआ कि वह किस तरह कतार दर कतार वापस जाते रहे और थोड़ी-थोड़ी देर बाद मुड़कर अपनी राइफलों से अंग्रेजों को निशाना बनाते और अक्सर अपनी तोपों का मुंह मोड़कर ब्रिटिश सिपाहियों पर गोला-बारूद और गोलियों से हमला करते।

“अब बहुत तेजी से बारिश होने लगी और हमारे सब सूती कपड़े भीग गए और हम अंदर तक गीले हो गए… हमारे बहुत आदमी गिर गए… यह बिल्कुल नर्क का नमूना था। हमारी तरफ का नुक्सान इतना ज़्यादा था कि हमको अस्थायी रूप से रुक जाना पड़ा। बहुत मुश्किल से हमने सिपाहियों को फिर से लड़ने पर तैयार किया। घेराबंदी शुरू होने के बाद से उस दिन का नुक्सान सब दिनों से ज़्यादा था। हमारी छोटी सी फौज के 221 आदमी मारे गए और जख्मी हुए। दूसरी तरफ पश्चिम में बख्त खां और उसकी फौज ने हमला करके तीस हजारी बाग पर ब्रिटिश नाकाबंदी पर कब्जा कर लिया। उस वक़्त ब्रिटिश फौज की शारीरिक और मानसिक हालत, दोनों बहुत नाजुक थीं। और उनको इतनी घबराहट, डर और दबाव था कि मेजर विलियम आयरलैंड के शब्दों में, “क्रांतिकारियों  के उनके कैंप में घुस आने के बाद, कुछ अंग्रेज़ अफसरों ने गुस्सा अपने बेचारे हिंदुस्तानी नौकरों पर उतारा, जो पनाह लेने चर्च के कब्रिस्तान के सामने जमा थे।

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