1857 की क्रांति के करीब छह वर्ष बाद 1863 ई. में दिल्ली नगर निगम की बुनियाद पड़ी। उसकी पहली सभा 1 जून 1863 के दिन हुई। सन् 1881 में इसे प्रथम दर्जे की म्युनिसिपल कमेटी बना दिया गया। उस वक्त इसके 21 सदस्य थे, जो सब नामजद थे। उनमें 6 सरकारी और 15 गैर-सरकारी थे। गैर-सरकारी सदस्यों में 3 अंग्रेज, 6 हिंदू और 6 मुसलमान थे। डिप्टी कमिश्नर चेयरमैन हुआ करता था। सन् 1863 में कमेटी की आय केवल 98,276 रुपये थी।

दिल्ली में 1863 से पहले स्वायत्त शासन का कोई लिखित रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। आजाद भारत में संसद में एक अधिनियम पारित किया गया था और एमसीडी आधिकारिक तौर पर 7 अप्रैल, 1958 को गठित की गई।

1866 और 2009 के बीच, चांदनी चौक में दिल्ली टाउन हॉल ही एमसीडी का मुख्यालय था। अब, इसका मुख्यालय मिंटो रोड पर नए एमसीडी सिविक सेंटर में स्थानांतरित हो गया है। एमसीडी, इस मामले में अद्वितीय है और इसके अंदर कई गांवों को भी समाहित किया गया।

1971 से पहले जल और सीवेज बोर्ड, दिल्ली राज्य बिजली बोर्ड और दिल्ली सड़क परिवहन प्राधिकरण भी एमसीडी का हिस्सा थे। नवंबर 1971 के बाद परिवहन प्राधिकरण को नगर निगम से अलग कर सड़क परिवहन निगम का गठन किया गया। मार्च 2022 में दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक को लोकसभा में ध्वनि मत से पारित किया गया। इस विधेयक के जरिए तीनों नगर निगमों का एकीकरण किया गया। विपक्षी दलों ने दावा किया कि यह कदम भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा नगरपालिका का नियंत्रण हासिल करने का एक प्रयास है जहां इसे आम आदमी पार्टी (आप) से कड़ी टक्कर मिल सकती है। हालांकि, विधेयक कहता है कि दिल्ली के तत्कालीन नगर निगम (MCD) का विभाजन क्षेत्रीय विभाजन और राजस्व पैदा करने की क्षमता के मामले में ‘असमान’ था। लेकिन, अब एकीकरण पूरा हो गया है।

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