1857 की क्रांति: सिपाहियों के लिए आर्थिक मदद का इंतजाम नहीं हो पाया था। बहादुर शाह जफर की हर कोशिश नाकाम हुई। एक कोशिश यह भी की गई कि जो शराब अंग्रेजों के घर से मिली थी उससे विस्फोटक बारूद बनाया जाए।
2 सितंबर को ‘144 शराब की बोतलें’ बारूद की फैक्ट्री में भेज दी गईं। लेकिन इसका नतीजा भी कुछ अच्छा नहीं निकला। अंग्रेजों का कहना था कि हालांकि क्रांतिकारियों का निशाना शुरू में बहुत सटीक था लेकिन जुलाई से देखा गया कि अक्सर उनके गोलों में विस्फोट होना कम होता जा रहा था।
सबसे ज़्यादा धक्का 7 अगस्त को लगा जब ब्रिटिश सिपाहियों का एक इत्तफाकी गोला क्रांतिकारियों की बारूद बनाने वाली सबसे बड़ी फैक्ट्री पर जो गली चूड़ीवालान में थी, आ गिरा। जिससे वहां काम करने वाले 500 आदमी जलकर खाक हो गए। सिपाहियों को ख्याल हुआ कि जरूर किसी ने मुखबिरी की है और गुस्से में उन्होंने जफर के वजीरे-आजम अहसनुल्लाह खान की हवेली पर हमला कर दिया, जिन पर उन्हें गद्दारी का शक था।
हवेली पूरी जल गई जिसका गालिब को बहुत अफसोस हुआ क्योंकि वह हकीम के करीबी दोस्त थे और बहुत सी शानदार शामें उन्होंने इस हवेली में उनके साथ गुज़ारी थीं। दस्तंबू में उन्होंने इसे उस सभ्य और सुसंस्कृत दिल्ली पर हमला लिखा है, जिससे उन्हें इश्क था और जिसे बनाने में उनका बड़ा हिस्सा था। हालांकि हकीम की जान बच गई लेकिन जब तक ‘घर जलकर तबाहो-बर्बाद नहीं हो गया, यह शरारत कायम रही’।
“उस घर को जिसकी खूबसूरती और सजावट चीन के रंगीन महलों का मुकाबला करती थी, अच्छी तरह लूटा गया और उसकी छतें जला दी गई। सबसे बड़ा शहतीर और छत के नक़्शीन तख्ते जलकर राख हो गए और दीवारें धुएं से इस कदर स्याह हो गई कि ऐसा लगता था कि हवेली ने सोग में काला लिबादा पहना है। मध्य अगस्त तक, जब खुराक की कमी बहुत ज़्यादा महसूस होने लगी, तो भूखे सिपाहियों और क्रांतिकारियों की एक बड़ी तादाद रोज दिल्ली छोड़कर जाने लगी क्योंकि जब कुछ खाने को नहीं था, तो उन्हें लड़ाई जारी रखने से भी नाउम्मीदी थी।