बख्त खां के खिलाफ क्यों हुए दिल्लीवाले
1857 की क्रांति: फौजी कमांडर बख्त खां के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने 9 जुलाई को रिज पर अंग्रेजी सेना पर जोरदार हमला बोला। लेकिन शहर और किले दोनों में लोगों की उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं, इसलिए एक मायूसी थी कि अब तक अंग्रेजों के खिलाफ कोई निर्णयात्मक फतह नहीं मिली है और वह उसी तरह रिज पर जमे हुए हैं।
आने वाले हफ्तों में यह नाउम्मीदी और बढ़ती गई। शहर वालों के पास कोई ऐसी जासूसी नहीं थी, जिससे उनको मालूम हो सकता कि बख़्त खां के फौजी उपाय कितने कामयाब रहे हैं और न ही उनको यह अंदाज़ा था कि अंग्रेजों की हालत कितनी नाजुक है और उन पर बख्त खां के हमलों का कितना दबाव पड़ रहा था। वह तो सिर्फ यह देख सकते थे कि रिज पर अंग्रेज़ फौज की कतारें जूं की तूं जमी हुई हैं।
इसलिए लोग बख्त खां के खिलाफ बड़बड़ाने लगे। मिर्जा मुगल को तो उससे पहले ही नाराजगी थी क्योंकि वह उसी की वजह से अपने कमांडर पद से हटाए गए थे। और दूसरे सिपाही भी उसको पसंद नहीं करते थे क्योंकि वह अपनी रेजिमेंट के सिवाय और किसी के आदेश मानना नहीं चाहते थे। इसलिए आहिस्ता-आहिस्ता, जब उसके हमलों से कोई फतह नहीं हुई, तो बख्त खां का रोब और सिपाहियों पर उसका असर कम होता गया।
जुलाई के आखिर तक बख्त खां के खिलाफ दरबार में खूब शिकायतें होने लगीं। 29 जुलाई को एक सिपाही ने शिकायत की कि बहुत दिन गुजर गए हैं और बख़्त खां ने अपनी फौज के साथ कोई हमला नहीं किया है। बख़्त खां को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया, लेकिन बादशाह ने कहा कि बात तो सही है। कुछ दिन बाद जब एक प्लान किया हुआ हमला तेज बारिश की वजह से रद्द करना पड़ा, तो ज़फ़र ने बहुत नाराज होकर कहा कि “इस तरह तो तुम कभी भी रिज को फतह नहीं कर पाओगे। तुम जितना माल मेरे लिए लेकर आए थे वह सब खर्च हो चुका है। शाही खज़ाना अब खाली हो गया है। मुझे खबरें मिल रही हैं कि सिपाही रोज़ाना अपने घर वापस जा रहे हैं। इस तरह मुझे कामयाबी की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती।”