1857 की क्रांति: नवनियुक्त कमांड जनरल विल्सन बहुत सावधान अफसर था। फिर भी अपने पहले तीन जनरलों के मुकाबले में वह रणनीति का माहिर साबित हुआ। उसे कोई गलतफहमी नहीं थी कि जो काम उसके सुपुर्द किया गया है वह आसान होगा।
उसने अपनी नियुक्ति की खबर सुनकर अपनी बीवी को लिखाः “प्यारी हेलन, ये जिम्मेदारी जो मेरे कंधों पर डाली गई है, बहुत मुश्किल है और अपनी कमजोरियों और अक्षमता को जानते हुए मुझे लगता है कि मैं इस बोझ के नीचे दब जाऊंगा।” फिर भी अपनी कमज़ोरी और खुद पर भरोसे की कमी के बावजूद विल्सन फौजी मामलों में बहुत दूरदर्शी था।
और वह यह देख सकता था कि कि पंजाब से फौज के आने तक फिलहाल अंग्रेजों के पास हिफाजती उपाय करने के सिवाय कोई और चारा नहीं है। इसलिए उसने उन तमाम बेकार के हमलों पर रोक लगा दी जिनसे अंग्रेज फौज की तादाद में कमी होती जा रही थी।
मसलन बगैर प्लान किए जवाबी हमले जो उनको महंगे पड़ते थे। या पीछे हटते हुए क्रांतिकारियों का पहाड़ी के नीचे सब्जी मंडी के बागों तक पीछा करना। दो ऐसे हमले पिछले चंद दिन में बहुत नुकसानदेह साबित हुए थे। एक में 220 लोग मारे गए थे और पांच दिन बाद ही दूसरे में 200। उसने बहुत सुव्यवस्थित ढंग से अपनी सुरक्षा बंदोबस्त, खाइयों और मोर्चों को मजबूत किया और अपनी पड़ाव की जगह के पीछे, यमुना पर बने पुलों को गिरा दिया ताकि वहां से फिर कोई अचानक हमला न हो सके।