1857 की क्रांति: बादशाह बहादुर शाह जफर ने बरेली फौज के बख्त खां को फौज का कमांडर नियुक्त कर दिया। कमांडर ने एक के बाद एक कई आदेश जारी किए। मुंशी जीवनलाल का कहना है कि अगले कुछ दिनों में आदेश और नए फरमान जारी होने का तूफान सा आ गयाः
“जनरल ने नक्कारे के साथ फरमान जारी किया कि सब दुकानदार हथियार रखें और कोई भी घर से बाहर बगैर हथियार के नहीं निकले। जिनके पास हथियार नहीं हों, वह हेडक्वार्टर में दर्खास्त दें जहां से उन्हें मुफ्त हथियार दिए जाएंगे। अगर कोई सिपाही लूटमार करता पकड़ा जाएगा, तो उसका बाजू काट दिया जाएगा।
अगर किसी सिपाही के पास चोरी के हथियार हैं तो वह फौरन उन्हें हथियारखाने में जमा करा दे, वर्ना बहुत सख्त सजा दी जाएगी। जनरल ने खुद हथियार के गोदाम का मुआयना किया और सारे सामान को ठीक से तरतीब दिया। सारे नौजवान शहजादों को आदेश दिया गया कि उनको हर तरह की फौजी ड्यूटी से हटा दिया गया है। सारे सिपाहियों को सुबह-सुबह परेड करने का आदेश दिया गया।
अंग्रेजों के तीन जासूसों को मौत की सजा दी गई। सारी फौज को दिल्ली दरवाज़े से अजमेरी दरवाज़े तक परेड कराया गया। जहां जनरल ने उनसे बहुत मेहरबानी से बात की और हमदर्दी जाहिर की, वहीं यह भी खबरदार किया कि वह शहर के लोगों को नहीं लूटेंगे और ना ही तंग करेंगे।