शैलेंद्र, शंकर-जयकिशन और मुकेश। इन चारों ने राज कपूर के लिए बेहतरीन रचनाएं की। शैलेंद्र को गाना लिखने के लिए राज कपूर को मनाना पड़ा। दरअसल, शैलेंद्र एक रेलवे कर्मचारी थे, जो कविता लिखते थे। वे विचारधारा से एक वामपंथी थे। वे नई विचारधारा के कवि थे, लोगों के प्रति समर्पित कवि । वे आम बोलचाल की भाषा में लिखते थे। जन साधारण की संवेदनाओं को उठाते थे। किसी आदर्शवादी की तरह वे फिल्मों और फिल्मों से संबंधित लोगों से घृणा करते थे। राज कपूर ने एक मुशायरे में शैलेंद्र को सुना और उन्होंने कहा कि वे उनके लिए काम करें। शैलेंद्र ने मना कर दिया। राज कपूर जल्दी हार माननेवाले व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने शैलेंद्र को अपने कॉटेज पर आने का निमंत्रण दिया। शैलेंद्र आए और वहाँ एक लंबी चर्चा के उपरांत राज कपूर ने अपना प्रस्ताव दोहराया।
शैलेंद्र ने फिर मना कर दिया। “ठीक है, आप जाओ, परंतु यह एक लिफाफा है आपके लिए,” राज कपूर ने कहा। उन्होंने लिफाफे में कुछ पैसे डाल दिए। लिफाफे को चिपका दिया और उसके ऊपर शैलेंद्र का नाम लिख दिया। “मैं इसे अपने कार्यालय में रख रहा हूं। किसी भी समय जब आप मुसीबत में हो और पैसों की आवश्यकता पड़े तो आकर ले जाना, बिना किसी शर्त के । ” आवश्यक रूप से एक समय आया, जब इस तेजस्वी कवि को पैसों की दिक्कत हुई। उसके सबसे बड़े लड़के का जन्म होने को था और उसको अस्पताल में बिलों का भुगतान करना था। वे आए और लिफाफा लेकर चले गए। राज को यह बात पता थी, लेकिन उन्होंने उनसे संपर्क साधने का कोई प्रयत्न नहीं किया। कुछ दिन के उपरांत शैलेंद्र स्वयं एक कविताओं का पुलिंदा लेकर आए । “यह आपके लिए है, ” उन्होंने कहा। राज ने ” कहा, “आपको यह नहीं करना है।” “तो क्या आप सोचते हैं कि मैं आपका यह दान स्वीकार करूंगा?” कवि ने तुरंत उत्तर दिया और इस तरह शैलेंद्र आर.के. के खजाने का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गए और भारतीय सिनेमा की एक यादगार हस्ती भी।