जब शेरशाह ने हुमायूं पर फतह पाई और दिल्ली उसके हाथ लगी तो उसने किला कोहनाह में चंद मकान बनवाए, जिनमें मस्जिद के करीब 1541 ई. में एक मकान बतौर जहांनुमां बनाकर शेरमंडल नाम रखा। तारीखे दाऊदी में लिखा है कि किला शेरगढ़ के अंदर शेरशाह ने एक छोटा-सा महल बनवाया था, जिसका नाम शेरमंडल था, मगर वह बनते-बनते रह गया। यह कोई बड़ी इमारत नहीं है और न ऐसे स्थान पर बनी है कि इसको महल कहा जा सके।
शेरमंडल एक अठपहलू तीन मंजिल की इमारत है। तीसरी मंजिल पर एक खुला हुआ मंडवा है, जिसका द्वार पूर्व की ओर है। यह इमारत 60.5 फुट ऊंची है, जिसका व्यास 52 फुट है। सारी इमारत लाल पत्थर की बनी हुई है जिसमें जगह-जगह संगमरमर लगा है। दाखिल होने का द्वार दक्षिण की ओर है। चबूतरा साढ़े चार फुट ऊंचा है। यह इमारत मंडवे को छोड़कर 40 फुट ऊंची है। मंडवा 16 फुट ऊंचा है, जिसका व्यास 20 फुट है। मंडवे के ऊपर एक बुर्जी है जिस पर संगमरमर की पट्टियां हैं। इस बुर्जी के आठ खंभे हैं, जिन पर लहरियेदार काम बना है। उस पर चढ़ने के दो जीने हैं। ऊपर की मंजिल की दीवार भी है। ऊपर की मंजिल के छज्जे के नीचे आठ दीवारदोज नोकदार खिड़कियां बुर्ज की आठों दिशाओं में हैं, जिनमें लंबोतरी महरायें हैं। ऊपर चढ़कर दूर-दूर के जंगल और दृश्य दिखाई देते हैं। इमारत के अंदर पांच कमरे चौपड़ के नमूने के बने हुए हैं, जिनके बीच का कमरा सबसे बड़ा है।
सब कमरों में आपस में रास्ता है। दीवारों के बाकी हिस्सों में बेलपत्ती का काम हुआ है।
यह मंडल एक ऐतिहासिक घटना के कारण विख्यात हो गया। हुमायूं इसी मंडल के जीने से गिरकर मरा था। यह आम ख्याल है कि हुमायूँ उस मंडल को अपने पुस्तकालय के तौर पर काम में लाता था। उसकी मृत्यु 24 जनवरी 1556 ई. के दिन हुई।
हुमायूँ के शव को दीनपनाह से ले जाकर किलोखड़ी गांव में दफन किया गया था, जहां बाद में उसकी बीवी हाजी बेगम और उसके लड़के अकबर ने उसकी कब्र पर एक बहुत शानदार मकबरा बनवाया।