प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिंगापुर यात्रा से प्रगाढ़ हुए दोनों देशों के रिश्ते
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
भारत की दक्षिण-पूर्व एशिया में भूमिका लगातार बढ़ रही है, जिसमें सिंगापुर एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सेतु के रूप में उभरकर सामने आया है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रुनेई और सिंगापुर दौरे ने एक बार फिर से इस क्षेत्र में भारत की प्रमुखता को रेखांकित किया है। यह पहली बार था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने ब्रुनेई की यात्रा की, जबकि नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री सिंगापुर की अपनी पांचवीं यात्रा पर थे। यह दौरा यह दर्शाता है कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ अब केवल आर्थिक सहयोग तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि सामरिक महत्व भी इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संबंधों को पुनः सशक्त करने की कोशिश है। इस नीति के तहत, भारत ने पिछले कुछ वर्षों में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। चाहे वह वियतनाम और मलेशिया के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं हों या सिंगापुर और ब्रुनेई के साथ रणनीतिक सहयोग, यह सब दर्शाता है कि भारत दक्षिण-पूर्व एशिया को अपनी कूटनीतिक प्राथमिकताओं में उच्च स्थान पर रख रहा है। विशेषकर सिंगापुर, जो भारत के लिए न केवल व्यापार और निवेश का महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि यह चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव में दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए स्थिरता लाने का भी एक प्रमुख स्तंभ है।
सिंगापुर: दक्षिण-पूर्व एशिया का कूटनीतिक सेतु
सिंगापुर को भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच एक पुल के रूप में देखा जा सकता है। अमेरिका और चीन के बीच तनाव और दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच, सिंगापुर बार-बार भारत से उम्मीद करता है कि वह इस क्षेत्र में अधिक सक्रिय भूमिका निभाए। सिंगापुर न केवल भारत का एक विश्वसनीय साझेदार है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत के लिए रणनीतिक प्रवेश बिंदु भी है।
प्रधानमंत्री मोदी की हालिया यात्रा इस सेतु को और मजबूत करने का प्रतीक है। सिंगापुर और भारत के बीच कौशल विकास, डिजिटल कनेक्टिविटी, और निवेश के क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण समझौतों पर सहमति बनी है। सिंगापुर की आर्थिक प्रगति में भारत मूल के लोगों का भी बड़ा योगदान है, और यही कारण है कि दोनों देश आर्थिक और सामरिक तौर पर और भी गहरे रिश्ते बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
आसियान और चीन का प्रभाव
भारत का दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रति बढ़ता कूटनीतिक रुझान केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है। आसियान (ASEAN) संगठन, जो इस क्षेत्र का प्रमुख आर्थिक और राजनीतिक समूह है, लंबे समय से चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण विभाजित दिखता है। चीन की आक्रामक नीतियों और दक्षिण चीन सागर में उसके दखल ने आसियान को कमजोर किया है। इस परिप्रेक्ष्य में, भारत का उदय इस क्षेत्र के देशों के लिए एक नया विकल्प बनकर उभर रहा है।
आसियान के सदस्य देश अब भारत के साथ संबंध मजबूत करने की इच्छा रखते हैं, क्योंकि भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत और उसकी तटस्थ नीति उनके लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती है। चीन का दखल इन देशों को विभाजित करता दिख रहा है, और दक्षिण चीन सागर को लेकर कोई ठोस नीति तय नहीं की जा सकी है। यह स्थिति भारत के लिए अवसर का द्वार खोलती है, क्योंकि भारत इस क्षेत्र में किसी भी गुट का हिस्सा नहीं है और एक स्वतंत्र कूटनीतिक शक्ति के रूप में उभर रहा है।
भारत और सिंगापुर के आर्थिक संबंध
सिंगापुर के साथ भारत के संबंध केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। डिजिटल कनेक्टिविटी और सेमीकंडक्टर क्लस्टर डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में सहयोग भारत के लिए बेहद अनुकूल साबित हो सकता है। सिंगापुर में पहले से ही भारतीयों का बड़ा योगदान रहा है, खासकर आईटी और वित्तीय क्षेत्रों में। डिजिटल लेन-देन में सिंगापुर पहले से ही यूपीआई (Unified Payments Interface) का उपयोग कर रहा है, और अब दोनों देशों के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी को और मजबूत बनाने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।
इसके अलावा, सेमीकंडक्टर डिजाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्रों में भी दोनों देशों ने सहयोग बढ़ाने का फैसला किया है। सेमीकंडक्टर की वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत बड़ी भूमिका निभाने की इच्छा रखता है, और सिंगापुर के साथ यह सहयोग इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सामरिक सहयोग और समुद्री सुरक्षा
भारत और सिंगापुर के बीच रक्षा और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सहयोग हो रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते समुद्री विवाद और चीन की आक्रामक नीतियों के बीच, सिंगापुर भारत के लिए एक अहम साझेदार बन सकता है। भारत और सिंगापुर ने समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में अपने सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया है, और यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
सिंगापुर की सामरिक स्थिति और उसकी मजबूत नौसैनिक क्षमता इसे इस क्षेत्र में भारत का एक महत्वपूर्ण सहयोगी बनाती है। दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य, शिक्षा, और तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में भी समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों को और बहुआयामी बनाएंगे।
ब्रुनेई: एक नया द्विपक्षीय दृष्टिकोण
सिंगापुर के अलावा, प्रधानमंत्री मोदी की ब्रुनेई यात्रा भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। ब्रुनेई को अब तक भारत आसियान के नजरिए से देखता रहा है, लेकिन अब द्विपक्षीय स्तर पर भी इसे एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखा जा रहा है। यह पहली बार है जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने ब्रुनेई का दौरा किया। इस यात्रा में जलवायु परिवर्तन, तकनीक, व्यापार, और रक्षा जैसे प्रमुख मुद्दों पर दोनों देशों के बीच बातचीत हुई है।
यह यात्रा ब्रुनेई और भारत के कूटनीतिक संबंधों के 40 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित की गई थी। इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करना था। प्रधानमंत्री मोदी ने इस यात्रा के दौरान स्पष्ट किया कि ब्रुनेई केवल आसियान का सदस्य देश नहीं है, बल्कि एक स्वतंत्र और महत्वपूर्ण साझेदार भी है।
दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की भूमिका का विस्तार
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की भूमिका को और विस्तारित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सिंगापुर और ब्रुनेई के साथ संबंधों को मजबूत करने के पीछे भारत की यही रणनीति है कि इस क्षेत्र में उसकी उपस्थिति और प्रभाव बढ़ाया जाए। दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना न केवल आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह स्पष्ट है कि भारत अब इस क्षेत्र में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार है। चाहे वह सामरिक साझेदारी हो, आर्थिक सहयोग हो, या समुद्री सुरक्षा, भारत दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ बहुआयामी संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। सिंगापुर के साथ भारत का ऐतिहासिक से सामरिक संबंधों की ओर अग्रसर होना और ब्रुनेई के साथ द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देना इस बात का संकेत है कि भारत की दक्षिण-पूर्व एशिया में भूमिका आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी।