पुराने जमाने में दास्तानों के सबसे अधिक लोकप्रिय संग्रह थे- ‘दास्तान-ए-अमीर हम्जा’ जो सबसे पहले मुहम्मद तुग़लक के काल में अमीर खुसरो ने फ़ारसी में लिखी थी। बाद में उसका अनुवाद सम्राट अकबर के मनोविनोद और दिलजोई के लिए फ़ैजी ने किया था। ‘तिलिस्म-ए-होशरुबा’, ‘उमर ऐयार’, ‘बोस्तान-ए-ख्याल (जिसका अनुवाद दिल्ली के ख्वाजा मीर अम्मन ने किया था) ‘रानी केतकी’, ‘गुल सनोबर’ और ‘गुल बकावली’ इनमें से बेशतर दास्तानें उस शैली में थीं जिसमें ‘अल्फ़ लैला’ के मशहूर क़िस्से थे ।
हर दास्तान विचित्र घटनाओं के बावजूद इन्सान की जिन्दगी के उतार-चढ़ाव का चित्रण करती थी। आमतौर पर दास्तान किसी ऐसे शहंशाह के जिक्र से शुरू होती थी जिसके प्रताप, शान-शौकत, ताक़त और दौलत का कोई ठिकाना न होता मगर जो समय के अत्याचारों से खंडहरों में बदल जाती है। हर कहानी में एक शिक्षा छिपी होती थी जैसे नेकी की बदी पर विजय, बुजदिली और मक्कारी की बहादुरी के हाथों पराजय। इस्लाम और कुन की टक्कर में इस्लाम की जीत आदि आदि । दास्तानगो मौने के अनुसार अपनी दास्तान में शेरों का भी इस्तेमाल करता था। उससे प्रभाव में आश्चर्यजनक वृद्धि होती थी। शेर गद्य की एकसरता को भंग करने का काम भी करते थे और दास्तान की रोचकता भी बनी रहती थी।
दास्तान सुनाने की कला को मीर बाक़र अली ने कहीं का कहीं पहुँचा दिया था। भाषा पर भी जो अधिकार उनको था, और किसी को नहीं मिल सका। उस दौर में अमीर हमज़ा की दास्तानें बड़ी लोकप्रिय थीं। उसमें बयान की हुई घटनाएं लोगों को चकित कर देती थीं और उनकी दिलचस्पी अंत तक बनी रहती थी। दास्तानगो इन कहानियों को मूल पुस्तकों से कंठस्थ कर लेते थे और अपनी ओर से दिलचस्पी को बढ़ाने के लिए उसमें कुछ जोड़ते भी जाते थे। इन कहानियों की भाषा को देखकर यह स्वीकार करना पड़ता है कि मुग़ल दौर में शिक्षित और अशिक्षित लोगों की फ़ारसी-निष्ठ कठिन उर्दू को समझने की क्षमता विस्मयकारी थी।
वर्णन क्षमता और प्रवाह की दृष्टि से मीर बाक़र अली अपनी दास्तानों में जादू पैदा करते थे। दास्तानें सब पुरानी ही होती थीं मगर मीर बाक़र ज़्यादातर अपनी भाषा का प्रयोग करते थे और उनकी अभिव्यक्ति शैली बड़ी आकर्षक होती थी। यह देखिए उनकी जादूबयानी का एक नमूना उनकी दास्तान के एक टुकड़े में-
“उभरा उभरा सीना, उठती जवानी, आईना-सा पेट
चीते की-सी कमर
बरस पंद्रह का या कि सोलह का सिन
जवानी की रातें मुरादों के दिन
कासनी जोड़ा पहने, जाम-ए-शराब-ए-गुलफाम हाथ में लिए, मयूर-ए-यादा-ए- निशात, पीछे दो खवाशें पश्शारों हाथों में, सामने कुछ गायनें सितार, तंबूरा, ढोलक के साथ धीमे-धीमे सुरों में छोटे-छोटे देस और भाग के खयाल गा रही हैं। ज्योंही निगाह शहजादे की इस जादू अदा पर पड़ी, मुर्ग-ए-दिल तीर-ए-निगाह-ए-नाज का शिकार हुआ-
थी नजर या कि जी की आफ़त थी
वो नजर ही विदा-ए-ताकत थी
होश जाता रहा निगाह के साथ
सब्र रुख्सत हुआ इक आह के साथ
शहजादा शिकार की जुस्तजू में खुद शिकार होकर वापस आ रहा था।
सामने नागहां इक तुर्फा बाग आया नजर
वस्फ-ए-शादाबी में है जिसकी मिरी कासिर जबां
लग्जिश-ए-मस्ताना दिखलाने लगा पा-ए-ख़याल
बस कि उसकी चार दिवारी थी साफ़ आईना सां
और करीब-ए-बाग़ मैदान-ए-वसी में अक्सर खेमे, डेरे, क़नातें, छोलदारियाँ इस्तादा हैं। शहजादा बदीउज्जमों क़रीब खेमों के आ गए थे कि ऐयार ने आगे बढ़कर आवाज़ दी, “खबरदार, होशियारन्न यह लश्कर ख़शान-ए-तेगजन का है। शहजादे ने मरकब को रोककर आमियां बिन उमर से कहा “तुम जाकर रख्शाँ तेगजन से कहो, “हमारे सरदार आपसे मुलाक़ात चाहते हैं…।” बदीउज्जमाँ मरकब बढ़ा, दाखिल-ए-लश्कर हुए और खेम-ए-रख़्शाँ पर आ देखा कि एक जवान-ए-जबरदस्त जिसका छाता गर्दन तैयार, मछलियाँ बाजू की उभरी हुई, रानें मोटी, आँखें सुख, क़रबान में कमान, हज़ार तीर का तरक़श, शक्ल-ए-दुम-ए-ताऊस पीछे पड़ा, जोड़ी खंजर-ए-आबदार की कमर में लगी, बड़ी शान-ओ-शौकत से बैठा है। बातें हो रही थीं कि एक शागिर्द ने अर्ज किया कि कसरत का वक़्त आ गया है। यह सुनकर रख्शाँ ने शहजादे से कहा कि आप भी तशरीफ़ ले चलें।
क़रीब ही जेर-ए-शामियाना अखाड़ा हरा किया हुआ था जिसमें पटड़ियें हर रा बाहर सिमा, कसरत और कुश्ती की हर शय रखी थी। शागिर्द लंगर-लंगोटे बाँधे कुछ डंड-बैठकें लगा रहे थे और कुछ दूसरी कसरतें कर रहे थे। रख़्शों ने बदीउज्जमा को दंगल पर बैठाया, चंद जाम शराब पी, लिबास उतारकर अखाड़े में उतरा और निहायत नख्वत से आवाज दी कि आओ कौन आता है ? आठ-दस शागिर्द आ खड़े हुए और रशॉ ने बैठकर कहा-आओ चित्त करो। ये सब लेट गए। रशों ने एक को उठाकर पटक दिया और खड़े होकर हुँकारा-कहाँ है रुस्तम-जो- सोहराब, असदयार-ओ-गोदजं, हम्जा-ओ-बदीउज्जमाँ आएँ और हलका, मेरी बदंगी का अपने कान में डालें। बदम को इस लाफ़ की कब ताब थी, बोले- ऐ जवान, ऐसी शेली बहादुरों को सजावार नहीं। रुस्तम वग़ैरा तो खैर अपनी जगह अगर आप कहें तो मैं मौजूद हाथ मिल जाए। रख्शों ने हँसकर कहा, ‘आइए’। शहजादा सामान-ए-कुती से आरास्ता होकर सामने आया। ताक़त आजमाने के बाद बहुत देर तक दाँव-पेंच होते रहे। शायद ही कोई दाँव ऐसा हो जो न खेला गया हो। आखिर में शहजादे ने रख्शों की कमरबंद दिल्ली जो एक शहर है
जंजीर में हाथ डालकर एक ही कुब्बत में सर से बुलंद किया और नारा मारा, ‘मनम सर कर्दा कुश्ती गीराँ जहाँ बदीउज्जमाँ।’ अब जो शहजादा लश्करगाह-ए-इस्लाम में पहुँचा, खलवत हुई तो इश्क़ ने जोर बाँधा, माशूक़ा-ए-तन्नाज़ की याद आई। हरचंद जब्त किया मगर कहीं इश्क़-ओ-मुश्क छिपाए छुपते हैं? एक हाय का नारा मारकर बेहोश हो गया।
यह ख़बर ख़्वाजा उमर-बिन-आमियाँ तक पहुँची और उन्हें शहजादे के इश्क में मुब्तला होने की भी आगही हुई। फ़ौरन बदीउज़्ज़माँ के खेमे में पहुँचे। शहजादे को होश आया, घबराकर पलंग से उतरा और शर्मिंदा शर्मिंदा सामने बैठ गया। अमीर नामदार ने भी ज़्यादा पूछना मुनासिव न समझा। शहंशाह ने जाते हुए अमीर नामदार से कहा, तुम जाकर शहजादे को समझाओ कि साहबजादे, हमने आलम-ए-शवाव में ऐसे बहुत खेल-खेले हैं मगर अंजाम उसका सिवाए जिल्लत-ओ-ख़्वारी के और आह-ओ-बेक़रारी के कुछ न देखा क्योंकि माशूक़ान-ए-चमन रोजगार हुफ्ता दोस्ती में मश्शाक़ हैं –
दम दिलासे में लगा लेना दिल इनका खेल है
रोज करना इक शिकार इनकी हैं अदना शोखियां
सुनके नाला आशिक़ों का कहते हैं क्या राग है
जबह करके देखते हैं सैर-ए-रक्स-ए-बिस्मिला
हर दास्तानगो की अपनी अलग भाषा और शैली भिन्न होती थी मगर मीर बाकर अली का कोई जवाब नहीं था। 1857 ई. में हंगामे आसपास का जमाना था। फ़ारसी की जड़ें उस वक्त भी बड़ी मजबूत थीं। मगर ध्यान देने योग्य बात यह है कि दास्तान कहने की भाषा दिल्ली के सब लोग समझते थे, वे भी जो मामूली पेशों के आदमी थे और जिनका ज्ञान नाम मात्र का था। दिल्ली का यह वातावरण दिल्ली को ज्ञान और साहित्य तथा संस्कृति का केंद्र बनाता था। अब तो कहानी सुनाना दिल्ली के सांस्कृतिक इतिहास का एक भूला-बिसरा अंग बन गया है। सच तो यह है. कि आने वाली पीढ़ियाँ आश्चर्य से सोचेंगी कि हिन्दुस्तान में कभी इस प्रकार की कला भी अपने चरमोत्कर्ष पर थी। दिल्ली के उस समय के दास्तानगो भी शायद यह बात कभी नहीं सोच सकते थे कि सांसारिक दबदबे के जिस उत्थान-पतन के युग, जिस अन्याय और अत्याचार का वे अपनी दास्तानों में बयान कर रहे हैं, उनकी कला कभी उनका शिकार होकर हमेशा के लिए इतिहास के गर्त में खो जाएगी।