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लोकगीत जन-जीवन का बड़ा सुंदर चित्र हैं। छठी-छिल्ले से लेकर दूसरी रस्मों तक की हू-ब-हू तस्वीरें लोकगीतों में मिलती हैं। स्त्री गर्भवती हुई और गीत गाने शुरू हो गए। खबर पाते ही नाइन यह गीत गाती थीं-
बड़े बेरी के खट्टे-मीठे बेर
सौरे जो उनमें बड़े रंग रसिया
बागों में लगा दिया पेड़, हमारा जिया बेरों को
बड़े बेरी के….
सासूजी उनकी बड़ी लड़ाका
बागों से हटा लियो पेड़, हमारा जिया बेरों को बड़े बेरी के…
जेठा जी उनके बड़े रंग रसिया
आंगन में लगा दिया पेड़, हमारा जिया बेरों को
बड़े बेरी के…
जेठानी जी उनकी बड़ी लड़ाका आंगन से हटा दिया पेड़, हमारा जिया बेरों को
बड़े बेरी के….
बच्चा पैदा हुआ है, देखिए घर में ढोलकी पर यह गीत उभर रहा है-
आंगन बजत बधइया, भीतर सखियां गावे बजने लगी सब नगर बधाइया
देहरी बैठी सासुइयां, ससुर दरवाजे
भावज अपने छोटे देवर से कहती है कि जाओ बच्चा पैदा होने की ख़बर उसके मैके में पहुँचा दो। देवर पसोपेश करता है तो भावज कहती है-
जा तू न जा मोरे देवरा
सठोरा तोको न दूंगी मोरे देवरा
पंजीरी तोको न दूंगी मोरे देवरा
इस अवसर के लोकगीतों में सास, ननद, देवर, देवरानी, जिठानी आदि का उल्लेख मिलता है। दिल्ली के हिन्दू-मुस्लिम घरानों में औरतें गाती हैं-
अलबेली चचा मान करे नंदलाल से
सुहागन चचा मान करे नंदलाल से
अलबेले ने मुझे दर्द दिया सांवरिया ने मुझे दर्द दिया
पायलिया ने मुझे दर्द दिया
जाय कहो लड़के के नाना से रंग खिचड़ी ला दें रे
जाय कहो लड़के के मामू से हंसली कड़े गढ़वा दें रे
जाय कहो लड़की की ख़ाला से कुरते टोपी सिलवा दें रे
जाय कहो लड़की की नानी से मटकती विरकती विधवा ला दें रे
जब जच्चा का सामना पति से होता है तो पतिदेव ऐसे बनते हैं जैसे कुछ जानते ही नहीं। जच्चा रानी भी ऐसे ही गोल-मोल बात करती है, मगर अंत में भेद खुल ही जाता है। इस मौके का यह गीत इस दशा का चित्रण कितने सुंदर ढंग से करता है-
आया री मेरा भोला सा राजा, आया री छबीला सा राजा बीबीजी कोठे काहे को चढ़ी थीं ?
ऐ राजाजी मैंने चांद देखा।
बीबीजी परदे काहे को पड़े थे?
ऐ राजाजी मेरी आँखें दुखी थीं।
बीबीजी दाई काहे को आई बीर
ऐ राजाजी मेरी नाफ़ हट गई थी ?
बीबीजी कीचड़ काहे को हुई थी?
ऐ राजाजी मेरा घड़ा टूटा था
बीवीजी बच्चा किसका रोया था?
ऐ राजाजी तेरी बेल चढ़ी थी
बीबीजी छलबल काहे को किए थे?
ऐ राजाजी में तुमसे डरी थी
बच्चा होने की खुशी में जच्चा अपने मैके और पीके के रिश्तेदारों को बुलाने की इच्छुक है ताकि वे नेग दें इस लोकगीत में इन्हीं भावनाओं की अनुगूंज है-
बुलाओ री मेरी सास बड़ी को, वे आएं पलंग बिछाएं
बुलाओ री मेरे अब्बा बड़े को, वे आएं मोर नचायें
बुलाओ री मेरे सुसर बड़े को, वे नीवत रखाएं
बुलाओ री मेरी ननद बड़ी को, वे आएं छातियाँ धुलाएं
बुलाओ री मेरी बहन बड़ी को, वे आएं कुरता टोपी लाएं
पायल बाजे झनन झनन..
मगर जच्चा रानी बड़ी होशियार है जहां तक ससुराल के रिश्तेदारों का संबंध है सबको बिना नेग दिए टालना चाहती है। सब नेग अपने ही गहनों में डलवाना चाहती है-
राजा मैं भोली, मेरे घर को न लुटा दीजो, सारा संगवाए दीजो
सास जो मांगे सोंठ गंवाई राजा, उसको भी जवाब दीजो
सास का नेग मेरे टीके में डलवा दीजो राजा मैं भोली मेरा घर….
ननद जो मांगे छातियां धुलाई, राजा उसको भी जवाब दीजो
ननद का नेग मेरे झुमके में डलवा दीजो, राजा में भोली मेरा घर…..
जिठानी जो मांगे छठी नहलवाई, राजा उसको भी जवाब दीजो
जिठानी का नेग मेरी चंपा में डलवा दीजो, राजा मैं भोली मेरा घर…
ये खूबसूरत जचगीरियां देखिए-
1–मैंने छपवा दिया अख़बार लल्ला तेरे होने का
सास जो आएगी चढ़वा चढ़ाएंगी
मैंने दिलवा दिए सब नेग……
ननद जो आएगी छाती धुलाएगी
मैंने दिलवा दिए सब नेग….
जिठानी जो आएगी छठी पुजवाएगी मैंने दिलवा दिए सब नेग…
2–मेरे बाबुल को लिखो संदेश झंडूला आज हुआ
बाबुल हमारे राजा के चाकर बीरन बाले भेस
बाबुल हमारे राजा के चाकर छुट्टी न पाएंगे
बाले बीरन चल न पाएंगे डगर भूल जाएंगे
मेरी मां का कलेजा ठंडा आज हुआ
मेरे बाबुल को लिखो संदेश झंडूला आज हुआ
(लड़की अपने बाबुल को यह संदेश तो भिजवा रही है कि लड़का हुआ है। मगर उसे अंदेशा है कि उसका बाप राजा का नौकर है और उसे छुट्टी नहीं मिलेगी। इसी तरह उसके भाई छोटे-छोटे हैं और चल नहीं सकेंगे और रास्ता भूल जाएंगे। जब तक लड़की के लड़का नहीं हो जाता उसकी माँ परेशान रहती है। अब जब लड़का हो गया है तो माँ की चिंता दूर हो जाएगी।)
जहांगीर के जन्म के समय यह गीत गाया गया था-
मांगे जोधाजी का राज लल्लाजी का मालन छुए
थाल भर मोती जोधारानी लाई वह भी न लेवे यह दाई
शाल-दुशाले जोधारानी लाई वह भी न लेवे यह दाई
हाथी-घोड़े जोधारानी लाई वह भी न लेवे यह दाई
वह तो मांगे है आधा राज महाबली महाराज वह तो मांगे है आधा राज
भानजे के जन्म की सूचना पाकर बच्चे का मामा अच्छे-अच्छे कपड़े, कुरता-टोपी लेकर बहन के घर आता है। बधाइयां गाने शुरू हो जाते हैं-
बधावा लाई ननदी सुनो सांवरिया
कहां से आई सोंठ कहां से आया जीरा
कहां से आई ननदी सुनो सांवरिया
कहां से आई सोंठ कहां से आया जीरा
दिल्ली से आई सोंठ आगरे से आया जीरा
बनारस से आई ननदी सांवरिया
कहां रखें सोंठ, कहां रखें जीरा
कहां बैठे ननदी सुनो सांवरिया
नटखटी है जच्चा जीरा कड़वा रे जच्चा
बधावा लाई ननदी सुनो सांवरिया
नन्हे-मुन्ने बच्चों को पालनों में लिटाकर लोरियां सुनाई जाती है। हाथों में झुनझुने देकर बहलाया जाता है-
आजा री निंदिया तू आ क्यों न जा
मेरे वाले को आके सुला क्यों न जा
आती हूं अभी आती हूं बाले को तेरे सुलाती हूं
आई थी निंदिया खबर न हुई
गई थी निंदिया जगा कर गई
आ जा री निंदिया…
2—लोरी से मेरे बबुआ लोरी ले, मेरे छगन मगनवा लोरी ले
दादा के प्यारे लोरी ले, कि झूल मेरा पालना ए बबुआ
तेरी दादी झोंटा दे गई, महारानी झोंटा दे गई
कोई बिछियों की झंकार, कोई चूड़ी की झंकार
कड़े छड़ों की झंकार बबुआ, लोरी ले बबुआ लोरी ले
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