नानी मां को बच्चों ने फिर घेर रखा था। नानी मां बोली, ‘अच्छा बीच में तो नहीं बोलोगे?’ सबने एक साथ जोर से कहा, ‘नहीं बोलेंगे। नानी मां बोली, तो सुनो। एक बार कबूतरों का एक झुंड दानों की तलाश में आकाश में उड़ता हुआ चला जा रहा था। उन्हें उड़ते हुए बहुत देर हो गई थी, लेकिन कहीं अनाज का एक भी दाना नज़र नहीं आया था। उस झुंड में एक छोटा कबूतर भी था जो उड़ते-उड़ते बहुत थक गया था। जब कबूतर उड़ते-उड़ते एक जंगल पर से गुज़र रहे थे तो छोटे कबूतर ने अपने राजा से कहा, ‘महाराज, इज़ाज़त हो तो इस जंगल में थोड़ा-सा आराम कर लें।’ कबूतरों का राजा बोला, ‘पहले काम, फिर आराम बच्चे हिम्मत से काम लो, कहीं-न-कहीं, जरूर अनाज मिलेगा।’

छोटा कबूतर चुप हो गया। उसने हिम्मत की और जोर लगाकर उड़ने लगा। वह थककर चूर हो गया था मगर उसकी थकावट खुशी में बदल गई जब उसे एक पेड़ के नीचे अनाज पड़ा हुआ नजर आया। उसने दूसरे कबूतरों से कहा, ‘जल्दी करो और नीचे उतर जाओ। इस पेड़ के नीचे अनाज के दाने पड़े हैं। कबूतरों का झुंड फ़ौरन नीचे उतर पड़ा। एक बरगद के पेड़ के नीचे चावल के चमकते हुए दाने बिखरे पड़े थे। ये दाने एक शिकारी ने बिखेरे थे, मगर बेचारे कबूतरों को क्या पता? उनका भूख के मारे बुरा हाल था। दे चावल के दानों पर टूट पड़े और मजे ले-लेकर खाने लगे। यकायक उनके ऊपर एक जाल आकर गिरा और सारा झुंड उस जाल में फँस गया। उसी समय वह शिकारी जो छिपा खड़ा था, एक मोटा डंडा हाथ में लिए कबूतरों की तरफ़ बढ़ा। कबूतरों के राजा ने उसे देख लिया और बोला, “हमें फ़ौरन कुछ करना चाहिए वरना यह ज़ालिम शिकारी हमें मार डालेगा। आओ, हम सब मिलकर जोर लगाएँ और जाल समेत उड़ चलें याद रखो हमारी एकता ही हमारी शक्ति है।”

“बच्चो, ज्योंहि शिकारी जाल के पास पहुंचा। कबूतरों ने जाल का एक-एक हिस्सा पकड़कर पूरा जोर लगाया और जाल समेत उड़ गए। शिकारी हैरान होकर वहीं खड़ा रह गया। उसने यह दृश्य पहले कभी नहीं देखा था। उसने सोचा कि किसी तरह से उसका जाल ही उसे वापस मिल जाए उसने कबूतरों की तरफ दौड़ना शुरू कर दिया। कबूतर शिकारी को अपने पीछे आता देखकर पहाड़ों और घाटियों के टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर उड़ने लगे। आखिरकार शिकारी मायूस होकर लौट गया। जब शिकारी कहीं नजर नहीं आया तो कबूतरों का राजा बोला, “शुक्र है कि ख़तरा टल गया। चलो अब पहाड़ी से परे मंदिर की तरफ चलें। वहीं मेरा एक दोस्त चूप रहता है।

वह अपने नुकीले दांतों से इस जाल को काटकर हमें आजाद कर देगा।” सारे कबूतर शोर मचाते हुए मंदिर के पास चूहे के घर उतर गए। उनके शोर से चूहा डरकर अपने बिल के आखिरी कोने में दुबककर बैठ गया। कबूतरों के राजा ने बाहर से उसे पुकारकर कहा, “भाई चूहे, हम तुम्हारे पास मदद के लिए आए हैं।” कबूतरों के राजा की आवाज़ सुनकर चूहे ने बिल के दरवाज़े से झाँककर देखा कि वाक़ई वह तो उसका दोस्त कबूतरों का राजा है। चूहा बाहर आ गया और कबूतरों के राजा ने उसे सारा माजरा सुनाकर कहा, ‘भाई चूहे, तुम इस जाल को काटकर हमें आजाद कर दो।’

चूप आगे बढ़ा और उसने पहले अपने नुकीले दांतों से जाल के एक हिस्से को काटकर राजा को आजाद करना चाहा, मगर राजा बोला, “नहीं नहीं, मेरे दोस्त, पहले मेरे दूसरे साथियों को आजाद करो, मुझे सबसे बाद में।” चूहा जानता था कि राजा के दिल में अपनी प्रजा के लिए बड़ा प्यार है। उसने जरा-सी देर में एक-एक करके जाल के सारे फंदे काट डाले और तमाम कबूतरों और राजा को आजाद कर दिया। कबूतरों ने अपनी जान बचाने वाले चूहे को धन्यवाद दिया और उसी एकता से मिलकर झुंड में फड़फड़ाते हुए रवाना हो गए।

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