ustad amir khan biography
उस्ताद अमीर खां का प्रारंभिक जीवन,ustad amir khan belongs to which gharana
किराना घराना के प्रतिनिधि के रूप में उस्ताद अमीर खां को कौन नहीं जानता है। उनका जन्म १३ फरवरी, १९७४ के अकोला में हुआ। पिता शाहमीर खां एक उत्तम कोटि के सारंगी वादक थे। बंबई से सारंगी शिक्षा प्राप्त कर इंदौर में रहने लगे। इंदौर उस समय कलाकारों का गढ़ था।
शाहमीर खां के आवास पर चोटी के कलाकारों का जमावड़ा रहता था। अलावंदे जाफरुद्दीन खां, बंधु खां, मुराद खां आदि आकर शाहमीर खां से संगीत चर्चा किया करते थे। बालक अमीर (ustad amir khan biography) पर इस सांगीतिक वातावरण का प्रभाव पड़ा। प्रत्येक शुक्रवार को शाहमीर खां के मकान में संगीत का जलसा होता था, जिसमें मुराद खां बीनकार, वहीद खां और रज्जब अली खां नियमित रूप से शामिल रहते थे। उनका भी यथेष्ट प्रभाव अमीर खां पर पड़ा। उनके बुजुगों में मियां छंगे खां आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के जमाने में संगीतकारों के समूह में थे।
बचपन में संगीत शिक्षा,ustad amir khan
दस वर्ष की उम्र में अमीर खां (ustad amir khan biography) ने पिता से संगीत की शिक्षा लेनी प्रारंभ कर दी। शुरू में अमीर खां को सारंगी की शिक्षा दी गई और कुछ दिनों तक वे सारंगी वादन किया करते थे। तत्पश्चात् उन्हें गायन की शिक्षा दी गई। अमीर खां जब ग्यारह बारह वर्ष की उम्र के थे, तभी से रंगमंच पर गाने लगे।
स्वर लगाने का ढंग, गायन शैली, सुमधुर कंठ व संगीत की कठिन सरगमों की प्रस्तुति से वे संगीत प्रेमियों के प्रशंसक बन गए। कालांतर में उन्होंने सारंगी बजाना हमेशा के लिए छोड़ दिया और गायन को मुख्य आधार बना संगीत का अभ्यास करने लगे।
वहीद खां के शिष्य बने,ustad amir khan Wikipedia
इंदौर के बाद अमीर खां (ustad amir khan biography) बंबई गए। बंबई में उनकी मुलाकात अब्दुल वहीद खां से हुई। वहीद खां एक संगीत कार्यक्रम के सिलसिले में बंबई आए थे, जबकि वे दिल्ली में रहते थे। अब्दुल वहीद खां, अमीर खां का गायन सुन इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपना शिष्य बना लिया। उनसे गायन की बारीकियों को सीखा, तत्पश्चात् वे दिल्ली छोड़कर एक बंगाली सज्जन के साथ कलकत्ता आ गए।
कलकत्ता में उनके गायन की काफी सराहा गया और उन्होंने पहला आकाशवाणी संगीत कार्यक्रम आकाशवाणी, कलकत्ता से ही दिया। इसके बाद से देश के प्रत्येक आकाशवाणी केंद्रों से उनका कार्यक्रम प्रसारित होने लगा। साथ ही अखिल भारतीय स्तर के सम्मेलनों से वे आमंत्रित होते रहे। लगभग छह वर्षों तक कलकत्ता प्रवास के पश्चात् वे स्थायी रूप से बंबई में ही रहने लगे।
बैजू बावरा के गीतों से लोकप्रियता मिली
उस्ताद अमीर खां (ustad amir khan biography) खंडमेरु पद्धति के गणितीय सिद्धांत को अपनाकर स्वरों का विशिष्ट चमत्कार अपने गायन में दिखाते थे। इसलिए राग गायिकी में आलापचारी अधिक समय तक करते थे, जो साधारण कोटि के श्रोताओं के लिए रुचिकर नहीं था। इस हेतु वे सामान्यतः ठुमरी व हलके गीतों को नहीं गाते थे। उनके प्रिय राग थे- मुलतानी, दरबारी कान्हड़ा, शुद्ध कल्याण, आभोगी, ललित, मियां मल्हार, मारवा, तोड़ी व सुधराई आदि।
वस्तुतः उनकी गायिकी में अब्दुल वहीद खां का आलाप गायन, मुराद खां और वहीद खां के बीन का तथा तानों में रज्जब अली खां का प्रभाव देखने को मिलता था। साधारण श्रोताओं के बीच उनकी लोकप्रियता ‘बैजू बावरा‘ और ‘झनक झनक पायल बाजे‘ फिल्मों में पार्श्व गायन से बढ़ी। उस्ताद अमीर खाँ की मान्यता थी कि फिल्मों द्वारा शास्त्रीय संगीत का यथेष्ट प्रचार-प्रसार संभव है। शास्त्रीय संगीत के प्रति सामान्य जनों में अभिरुचि जाग्रत् करने में फिल्मों में उसके प्रयोग को वे सशक्त माध्यम मानते थे।
कला का बंटवारा नहीं हो सकता
उस्ताद अमीर खां (ustad amir khan biography) हिंदुस्तानी संगीत की परंपरा की एकता को अत्यधिक महत्त्व देते थे, जिसके कारण घरानेदारी को उन्होंने अधिक तरजीह नहीं दिया। पाकिस्तान में जब नई राष्ट्रीय संस्कृति की स्थापना का प्रयास चल रहा था और इस परिप्रेक्ष्य में हिंदुस्तानी संगीत से अलग पाकिस्तानी संगीत की रूपरेखा सजाने की परिकल्पना की जा रही थी, इस परिस्थिति में उस्ताद अमीर खाँ का वक्तव्य था, “भाई, ऐसा तो नहीं हुआ है कि चार स्वर भारत में रह गए हों और तीन पाकिस्तान चले गए हों। कला का बंटवारा जमीन-जायदाद की तरह नहीं किया जा सकता।”
सामान्यतः शास्त्रीय संगीतज्ञों द्वारा स्वर, राग और तालों की शुद्धता पर अधिक ध्यान दिया जाता है। किंतु उस्ताद अमीर खां रागों में रंजकता का अधिक खयाल करते थे। उन्होंने तरानों पर अधिक अनुसंधान किया और अनेक तरानों की रचना कर खुसरो के चलन को पुनस्थापित किया। कुछ समय तक वे रायगढ़ के राजदरबार से भी संबद्ध रहे तथा मिर्जापुर से भी। लेकिन जिंदगी का अधिकांश भाग कलकत्ता, दिल्ली और बंबई में व्यतीत किया।
अमेरिका, लंदन की यात्राएं की अमीर खां (ustad amir khan biography) ने कई बार विदेशों की भी यात्रा की। काबुल, अमेरिका, लंदन आदि देशों में उनके सफल व प्रशंसनीय कार्यक्रम हुए। उन्होंने पांच माह तक अमेरिका के न्यू पाक्ज स्कूल ऑफ म्यूजिक में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। सन् १९६७ में संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कृत हुए तथा १९७१ में भारत सरकार ने ‘पद्मविभूषण’ से अलंकृत किया। दुर्भाग्यवश ऐसे प्रतिभावान् व सृजनशील गायक की मृत्यु कलकत्ता में एक मोटर दुर्घटना में १३ फरवरी, १९७४ को हो गई।
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