स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने बताया विचार शून्य अवस्था, आध्यात्मिक शक्तियों और दिव्य प्रेम से जुड़े सभी रहस्यों को, जो आपकी जीवन यात्रा को एक नई दिशा दे सकते हैं
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर व्यक्ति अपने मन के भीतर चल रहे अनियंत्रित विचारों के ट्रैफिक जाम से परेशान है। शांति की तलाश में हम ध्यान और योग का सहारा तो लेते हैं, लेकिन कुछ गहरे सवाल हमें हमेशा उलझाए रखते हैं। क्या ध्यान में मिली शांति नींद थी या समाधि? आध्यात्मिक यात्रा में मिले अद्भुत अनुभव सच थे या हमारा वहम? और सबसे बड़ा सवाल – इस अशांत मन को शांत कर विचार शून्य अवस्था को कैसे पाया जाए?
इन गूढ़ प्रश्नों पर प्रकाश डाल रहे हैं प्रख्यात दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती। उनके प्रवचन के अंशों पर आधारित यह लेख आपको न केवल इन सवालों के व्यावहारिक उत्तर देगा, बल्कि जीवन के सबसे खूबसूरत अनुभव ‘प्रेम’ के द्वंद्व को समझने और उससे पार जाने का मार्ग भी दिखाएगा।
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क्या है शांत मन और विचार शून्य मन का रहस्य?
अक्सर लोग पूछते हैं कि मन को शांत कैसे करें, विचारों को शून्य कैसे करें? स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती एक क्रांतिकारी सूत्र देते हैं – मन को शांत किया ही नहीं जा सकता। यह सुनकर आश्चर्य हो सकता है, लेकिन सत्य यही है। मन का स्वभाव ही है गति करना, विचार उत्पन्न करना। जैसे आग का स्वभाव जलाना है, वैसे ही मन का स्वभाव सोचना है।
तो फिर समाधान क्या है?
समाधान मन को शांत करने में नहीं, बल्कि मन से अपनी पहचान तोड़ने में है। स्वामी जी कहते हैं कि विचारों और मन के ‘दृष्टा’ बनकर आप उस शांति को पा सकते हैं।
दृष्टा भाव का अभ्यास: जब आप अपने मन में चल रहे विचारों को बस दूर खड़े होकर देखते हैं, बिना उनमें उलझे, बिना उन्हें अच्छा-बुरा कहे, तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि आप मन नहीं हैं। आप वो हैं जो मन को देख रहा है।
आप कौन हैं?: वो जो देख रहा है, वो ‘चैतन्य’ है, ‘आत्मा’ है। और उस चैतन्य का स्वभाव ही शांत है। वह मनातीत, भावातीत दशा है। मन अशांत हो सकता है, लेकिन आप (चैतन्य) शांत हैं।
शांति का अनुभव: जैसे ही यह एहसास गहरा होता है कि “मैं मन नहीं, बल्कि मन का साक्षी हूं,” आप तुरंत मन के कोलाहल से पार उस शांत चैतन्य में स्थित हो जाते हैं। यही विचार शून्य मन की अवस्था का प्रवेश द्वार है।
आध्यात्मिक अनुभव: कहीं ये शक्तियों का भ्रम तो नहीं?
कई साधकों को ध्यान या सत्संग के दौरान ऊर्जा, शक्ति या किसी विशेष अवस्था का अनुभव होता है, लेकिन कुछ समय बाद वह गायब हो जाता है। इससे मन में शंका पैदा होती है कि क्या वह अनुभव मेरा वहम था?
स्वामी जी पतंजलि योग शास्त्र के ‘विभूति पाद’ का उल्लेख करते हुए सावधान करते हैं।
आने-जाने वाली चीजें सत्य नहीं: आध्यात्म की यात्रा में जो अनुभव या शक्तियां आती-जाती हैं, वे स्वप्न की तरह हैं। सत्य वह है जो सदा रहे, जो शाश्वत और सनातन है। इसलिए इन अनुभवों को महत्व न दें।
आकर्षण एक बाधा है: ये अनुभव बहुत लुभावने हो सकते हैं और मन में उन्हें दोबारा पाने की आकांक्षा जग सकती है। पतंजलि ने इन शक्तियों की चर्चा इसीलिए की है ताकि साधक इनसे सावधान रहें।
भटकाव का कारण: जैसे बाहर का संसार हमें भटकाता है, वैसे ही भीतर के ये शक्ति के अनुभव हमें यात्रा में अटका सकते हैं। ये मंजिल नहीं, बल्कि रास्ते के सुंदर पड़ाव हैं, जिनमें उलझना नहीं है। असली लक्ष्य उस शाश्वत को पाना है जो कभी आता-जाता नहीं।
समाधि या गहरी नींद: कैसे पहचानें अपने अनुभव को?
ध्यान की गहराई में अक्सर यह भ्रम होता है कि हम समाधि में थे या गहरी नींद (सुषुप्ति) में। दोनों में मन शांत होता है, विचार और स्वप्न बंद हो जाते हैं। स्वामी जी इसके बीच एक बहुत ही सूक्ष्म लेकिन स्पष्ट भेद बताते हैं।
समानता: दोनों ही अवस्थाओं में गहरा विश्राम होता है और बाहरी संसार का बोध समाप्त हो जाता है। मन लगभग न होने जैसा हो जाता है।
मूल भेद: भेद है – ‘स्वयं के होने का बोध‘ (Self-awareness)।
- समाधि में: आपको बाहर की दुनिया का पता नहीं चलता, लेकिन ‘मैं हूं’ का एहसास, स्वयं के अस्तित्व का बोध बना रहता है।
- सुषुप्ति (गहरी नींद) में: न संसार का पता रहता है और न ही स्वयं के होने का एहसास रहता है। आप पूरी तरह शून्य में विलीन हो जाते हैं, जहां ‘मैं’ का भाव भी नहीं होता।
अगली बार जब आप ध्यान की गहराई में जाएं, तो इस कसौटी पर अपने अनुभव को परखें।
प्रेम का द्वंद्व: ऊंचाई के बाद गहरी खाई क्यों?
एक साधक ने अपना दर्द बयां किया कि उसने प्रेम की परम ऊंचाई को जाना, लेकिन उसे संभाल नहीं पाया और आज उतने ही गहरे गड्ढे में है। स्वामी जी इसे जीवन का एक प्राकृतिक नियम बताते हैं – ‘अल्टीमेट लॉ ऑफ बैलेंस’।
द्वंद्व का नियम: जीवन में हर अनुभव द्वंद्वात्मक है। जितना ऊंचा पर्वत होगा, उतनी ही गहरी खाई होगी। प्रेम में जितनी ऊंची उड़ान होगी, गिरावट भी उतनी ही गहरी होगी। जितनी मुस्कान होगी, उतने ही आंसू भी बहेंगे।
व्यवस्थित विवाह बनाम प्रेम: स्वामी जी कहते हैं कि आयोजित विवाह (Arranged Marriage) एक फ्लैट जमीन पर चलने जैसा है, जहां न ऊंचाई का रोमांच है, न गिरने का खतरा। यह एक दीन-दरिद्र जीना है। वहीं, प्रेम आकाश में छलांग लगाने जैसा है, जिसमें गिरने और चोट खाने का खतरा है, लेकिन कम से “एक ऊंचाई को स्पर्श करने का अनुभव” तो मिलता है।
अनुभव से समाधान तक: यह चोट और दर्द एक नए द्वार खोलता है। यह आपको सिखाता है कि व्यक्ति पर आधारित प्रेम (व्यक्तिवाची प्रेम) में उतार-चढ़ाव निश्चित है। इससे आपके भीतर एक ऐसे प्रेम की आकांक्षा जन्म लेती है जिसमें यह द्वंद्व न हो।
दिव्य प्रेम (समष्टिवाची प्रेम): यही आकांक्षा आपको दिव्य या भागवत प्रेम की ओर ले जाती है। यह प्रेम किसी व्यक्ति पर निर्भर नहीं है, बल्कि आपके हृदय से पूरे अस्तित्व के लिए बहता है। जैसे फूल से सुगंध फैलती है, यह आप पर निर्भर है। इस प्रेम में पतन नहीं है, यह शाश्वत है।
आंतरिक यात्रा: आंखों से भीतर देखने की कला
जैसे कान बंद करके भीतर ‘अनहद नाद’ सुना जा सकता है, वैसे ही आंखों से भी भीतर दर्शन संभव है। यह विधि थोड़ी जटिल है, पर अभ्यास से संभव है।
अभ्यास कैसे करें: विशेषकर रात के अंधेरे में, आंखें बंद करके भीतर देखने पर ध्यान केंद्रित करें। बाहर के दृश्यों का रस लेना छोड़कर भीतर के दर्शन की कोशिश करते जाएं।
क्या अनुभव होगा: धीरे-धीरे आपको एक सूक्ष्म प्रकाश दिखाई देना शुरू होगा, जिसे ‘आलोक’ या ‘आभा’ कहते हैं।
घनश्याम दर्शन: स्वामी जी बताते हैं कि परमात्मा के प्रतीक कृष्ण और राम को श्याम वर्ण (सांवला) क्यों कहा गया है। क्योंकि जब आप भीतर दर्शन करते हैं, तो आपको अमावस की रात के आकाश जैसा रंग दिखाई देता है – काला, नीला, बैंगनी और हल्के दूधिया सफेद का मिश्रण। इसे ही ‘घनश्याम’ वर्ण कहते हैं। इसी दर्शन की प्यास में भक्त गाते हैं, “दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अंखियां प्यासी रहे।” इस भीतरी श्याम वर्ण को देखते-देखते चित्त परम शांत हो जाता है और साधक समाधि में उतर जाता है।
सवाल-जवाब
Q1: विचार शून्य मन कैसे पाएं?
A: मन को शांत करने की कोशिश न करें। बस अपने विचारों के दृष्टा या साक्षी बन जाएं। जैसे ही आप महसूस करते हैं कि आप मन नहीं, बल्कि उसे देखने वाले चैतन्य हैं, आप स्वतः ही मन के पार उसकी शांत अवस्था में पहुंच जाते हैं।
Q2: समाधि और गहरी नींद में क्या अंतर है?
A: मुख्य अंतर ‘स्वयं के होने के बोध’ का है। गहरी नींद में स्वयं का एहसास भी खो जाता है, जबकि समाधि में बाहरी दुनिया का बोध न होने पर भी ‘मैं हूं’ का आंतरिक एहसास बना रहता है।
Q3: आध्यात्मिक अनुभव आकर क्यों चले जाते हैं?
A: आध्यात्मिक यात्रा में आने-जाने वाले अनुभव प्रकृति से स्वप्न की तरह हैं। वे शाश्वत सत्य नहीं हैं। स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती के अनुसार, इन्हें महत्व नहीं देना चाहिए और इनमें उलझने से बचना चाहिए, क्योंकि ये साधक को मार्ग में अटका सकते हैं।
Q4: प्रेम में मिलने वाले गहरे दुख से कैसे बचें?
A: व्यक्ति पर आधारित प्रेम में सुख-दुख का चक्र निश्चित है। इससे बचने का एकमात्र उपाय है अपने प्रेम को व्यक्तिवाची से समष्टिवाची बनाना, यानी दिव्य प्रेम को साधना। यह प्रेम किसी पर निर्भर नहीं होता और आपके भीतर से पूरे अस्तित्व के लिए बहता है, जिसमें पतन का कोई भय नहीं होता।
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