स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती
स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती

एक सत्संग में स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने साधकों को आत्मज्ञान प्राप्ति के बारे में विस्तार से बताया

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

हाल ही में एक सत्संग में स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने आत्मज्ञान के रहस्य पर विस्तार से प्रकाश डाला। उनका कहना था कि साधक वर्षों तक साधना करता है, तप करता है, मंत्र-जप करता है, फिर भी आत्मज्ञान उसे क्यों नहीं मिलता?
स्वामी जी ने उत्तर दिया:

आत्मज्ञान की सबसे बड़ी रुकावट अहंकार है। जब तक साधक यह मानता है कि मैं कर रहा हूं, तब तक आत्मज्ञान नहीं हो सकता। बोध तभी घटित होता है जब कर्ता भाव पूरी तरह समाप्त हो जाए।”

यानी आत्मज्ञान श्रम और तपस्या का प्रतिफल नहीं है, बल्कि तब घटित होता है जब साधना की सारी कोशिशें टूट जाएं और भीतर केवल विश्राम शेष रह जाए।

बुद्ध की साधना और थकावट की कहानी

गौतम बुद्ध इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

  • राजमहल त्यागकर उन्होंने छह वर्षों तक कठोर तपस्या की।
  • हर गुरु की साधना को पूरे मन से अपनाया।
  • यहां तक कि केवल एक चावल के दाने पर उपवास करने लगे।
  • शरीर इतना दुर्बल हो गया कि नदी पार करना भी कठिन हो गया।

लेकिन परिणाम क्या हुआ? कुछ नहीं।

बुद्ध को पहली बार यह गहरी समझ मिली कि शरीर को कष्ट देने से आत्मा तक पहुंचना संभव नहीं है। साधना की व्यर्थता यहीं स्पष्ट हुई।

विश्राम में घटित हुआ परम जागरण

थके हुए बुद्ध ने एक दिन भोजन स्वीकार किया और गहरी नींद में सो गए।

  • उस रात न कोई इच्छा थी, न कोई मोक्ष की आकांक्षा।
  • अगली सुबह जब आंख खुली, उन्होंने भोर का तारा डूबते देखा।
  • उसी क्षण उनके भीतर परम जागरण (Enlightenment) घटित हुआ।

यानी आत्मज्ञान तब हुआ जब अहंकार और कर्ता भाव पूरी तरह टूट चुका था और केवल विश्राम शेष था।

श्रम और विश्राम का संबंध

स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने स्पष्ट किया कि साधना को नकारा नहीं जा सकता।

  • साधना जरूरी है क्योंकि वही हमें उसकी व्यर्थता का अनुभव कराती है।
  • जब साधक देखता है कि वर्षों की मेहनत से भी कुछ हासिल नहीं हुआ, तभी अहंकार टूटता है।
  • और जब अहंकार टूटता है तो भीतर समर्पण घटित होता है।

यानी आत्मज्ञान के मार्ग में श्रम और विश्राम विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।

लाओत्सु और गिरता हुआ पत्ता

लाओत्सु की कथा प्रसिद्ध है कि उन्होंने एक सूखा पत्ता गिरते देखा और उन्हें परम बोध हो गया।
लेकिन हमें यह नहीं बताया जाता कि उस क्षण से पहले लाओत्सु ने कितनी जन्मों की साधना की थी।

यह ठीक वैसा है जैसे पानी को धीरे-धीरे गर्म करना।

  • 0 से 99 डिग्री तक कोई खास बदलाव नहीं दिखता।
  • लेकिन 100 डिग्री पर अचानक पानी भाप बन जाता है।
    लोग केवल अंतिम क्षण देखते हैं, पूरी प्रक्रिया नहीं।

ओशो का दृष्टिकोण

ओशो ने पतंजलि योग सूत्र पर दिए अपने प्रवचनों में कहा कि —

“आज तक कोई भी व्यक्ति केवल साधना से बुद्धत्व को प्राप्त नहीं हुआ।”

उन्होंने समझाया कि साधना केवल साधक को वहां तक ले जाती है जहां उसका संकल्प टूट जाता है। जब “कर्ता भाव” नष्ट हो जाता है, तभी समर्पण स्वतः घटित होता है।

रामकृष्ण परमहंस की कथा

रामकृष्ण परमहंस ने छोटी उम्र से ही मां काली की भक्ति शुरू कर दी थी।
लेकिन अद्वैत अनुभव नहीं हुआ।
फिर उनके गुरु ने कहा —

“यह काली तुम्हारी कल्पना है। कल्पना से तलवार निकालो और इसे तोड़ दो।”

रामकृष्ण ने वैसा ही किया और उसी क्षण उन्हें वास्तविक समाधि प्राप्त हुई।
यह दर्शाता है कि पहले साधना का सृजन होता है और अंततः उसका विसर्जन।

भारतीय परंपरा का प्रतीक

भारतीय संस्कृति में गणेशोत्सव इसका सुंदर प्रतीक है।

  • हम गणेश की मूर्ति बनाते हैं, सजाते हैं, पूजा करते हैं।
  • दस दिन तक भक्ति में डूबे रहते हैं।
  • और फिर मूर्ति का विसर्जन कर देते हैं।

यही संदेश है — पहले साधना करो, फिर उसका विसर्जन करो।
विसर्जन का अर्थ है अहंकार का अंत और समर्पण का जन्म।

आत्मज्ञान प्राप्ति की असली बाधा

  • आत्मज्ञान अचानक प्रतीत होता है लेकिन यह लंबी साधना और तपस्या का परिणाम होता है।
  • असली रुकावट है अहंकार, जो हर साधना के पीछे छिपा रहता है।
  • जब साधक थक कर, टूट कर, पूरी तरह विश्राम में चला जाता है, तब समर्पण स्वतः घटित होता है।

जैसा स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने कहा —

हमारे करने से आत्मज्ञान नहीं होता। यह प्रभु-कृपा से होता है, गुरु-कृपा से होता है। अहंकार मिटते ही परम बोध प्रकट होता है।”

Q&A सेक्शन

Q1. आत्मज्ञान की सबसे बड़ी रुकावट क्या है?
आत्मज्ञान की सबसे बड़ी रुकावट अहंकार (Ego) है।

Q2. बुद्ध को आत्मज्ञान कैसे मिला?
भोर का तारा डूबते देख आत्मज्ञान हुआ, लेकिन उससे पहले छह वर्षों की साधना और तपस्या थी।

Q3. क्या आत्मज्ञान अचानक होता है?
यह अचानक लगता है, लेकिन इसके पीछे वर्षों की साधना और अनुभव छुपे होते हैं।

Q4. साधना क्यों जरूरी है अगर अंत में समर्पण ही सब कुछ है?
क्योंकि साधना के बिना उसकी व्यर्थता का अनुभव नहीं होगा। साधना अंततः समर्पण तक ले जाती है।

Q5. क्या समर्पण किया जा सकता है?
नहीं। समर्पण किया नहीं जाता, यह तब घटित होता है जब संकल्प और अहंकार टूट जाते हैं।

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