शाह आलम बहादुर शाह (1707-1712 ई.)
औरंगजेब का मरना था कि उसके लड़कों में खानाजंगी छिड़ गई। उसका बेटा शहजादा मोहम्मद मौज (आलम शाह) काबुल से आगरा आ पहुंचा और आगरा के पास उसी मुकाम जाजऊ पर, जहां उसके बाप ने दाराशिकोह को पराजित किया था, उसकी अपने भाई शाहजादा मोहम्मद आजम सूबेदार दक्खन से भारी लड़ाई हुई।
दोनों तरफ के लोग मिलाकर पैंसठ हजार से अधिक सैनिक मारे गए। मौजन की फतह हुई और यही शाह आलम बहादुर के नाम से गद्दी पर बैठा। तीसरे भाई कामबख्श ने चाहा कि शाह आलम से राज्य छीन ले, मगर वह असफल रहा और जख्मी होकर मारा गया। इस बादशाह के काल में कोई विशेष बात नहीं हुई। सिखों के साथ ही लड़ाई में इसने मुकाबला करते हुए 1712 ई. में लाहौर में वफात पाई। उसके शव को दिल्ली लाया गया और कुतुब साहब की दरगाह में दफन किया गया। इसकी बनाई हुई एक ही इमारत महरौली की मोती मस्जिद है, जिसे इसने 1709 ई. में बनवाया था।