जेम्स स्किनर एक स्कॉट सिपाही हर्कुलिस स्किनर का बेटा था जो खुद मोंट्रोज के प्रोवोस्ट का बेटा था। जेम्स की मां राजपूतानी थीं, ‘भोजपुर के जमींदार की बेटी’।” स्किनर ने बहुत बहादुरी से मराठों के लिए लड़ाई की थी, लेकिन बाद में उसको अंग्रेज़ का बेटा होने की वजह से मराठा फौज से निकाल दिया गया था। फिर वह अंग्रेज़ों की फ़ौज में दाखिल हो गया जहां उससे कंपनी द्वारा देसी खून होने की वजह से पक्षपात किया गया।

उन्होंने लिखा है: “मैं समझता था कि मैं ऐसे लोगों की नौकरी कर रहा हूं जो जाति या धर्म के बारे में कोई पक्षपात नहीं रखते, मगर मेरी सोच गलत थी। मेरी मिली-जुली विरासत दोधारी तलवार बन गई। जिसने दोनों तरफ से मुझे जख्मी कर दिया।

फिर भी मुगल बादशाहों की तरफ से उसे ऐसा खिताब मिला जिसको सुनकर उसके मोंटरोज वाले दादा की भौंहें चढ़ जातीं। “नसीरूद्दौला कर्नल जेम्स स्किनर साहब बहादुर ग़ालिब जंग”। दिल्ली वाले उसको संक्षिप्त करके उनको सिकंदर साहब बुलाते थे क्योंकि उस मुगल राजधानी के लोग उसे सिकंदरे-आजम का अवतार मानते थे।

स्किनर ईसाई था और काफी धार्मिक था। अपनी जिंदगी के आखिर में उसने दिल्ली का पहला चर्च “सेंट जेम्स चर्च” बनवाया था। वह दिल्ली की इंजील सोसाइटी का भी काफी सक्रिय सदस्य था। लेकिन इसके बावजूद वह कई ‘बीवियां’ रखने से बाज नहीं आया।

फैनी ईडन” उनको देखकर बहुत प्रभावित हुई और लिखती है:

“खूबसूरत मिसेज स्किनर्स की न जाने कितनी तादाद है”-एक अंदाज़े के अनुसार चौदह”–” उसने एक मस्जिद की भी मरम्मत करवाई जो इसकी हवेली के नज़दीक ही थी ताकि उसकी मुसलमान बीवियां वहां नमाज़ पढ़ सकें और एक मंदिर भी उनके लिए बनवाया जो हिंदू थीं।”

फैनी ईडन ने उनका जिक्र ऐसे किया है:

“वह एक देसी कर्नल लगते थे, बहुत काला रंग, लेकिन उनकी संगत उन तमाम गोरे अंग्रेज़ों से बेहतर थी जिनसे हमारी मुलाकात हुई। उन्होंने लड़ाइयों में बहुत कमाल दिखाया है। वह यहीं रहते हैं और बहुत अच्छे शख्स हैं। हम इतवार को उनके बनवाए हुए बड़े से चर्च में गए और वह मस्जिद भी देखी, जो इसके पास ही उन्होंने बनवाई है। उन्होंने मुझसे कहा कि जहां भी ख़ुदा है वहां धर्म भी है। मैं सोचती हूं कि वह अपने आपको मुसलमान कहते हैं।

फैनी का यह अंदाजा गलत था, लेकिन चूंकि स्किनर बिल्कुल मुगलों के अंदाज से रहता था और उसकी अंग्रेजी का लहजा भी अलग था और ग्रामर से आजाद, इसलिए यह गलती मुमकिन थी। उसकी ख़ास बीवी, जो शायद वैगनट्राइबर की सास होंगी, मुसलमान थीं और उसका नाम था आशूरी खानम, जो एक जागीरदार घराने से थीं और उनके पिता मिर्जा आजम बेग हरियाणा के एक बड़े जमींदार थे और हांसी में स्किनर के घोड़ों के दस्ते के प्रबंधक थे।

सिकंदर साहब की मौत के बाद उसके रंग-बिरंग बच्चे ज़मींदार और दरबारी बने रहे। साथ ही उनकी कोशिश रही कि मुगल दरबार और अंग्रेज़ों के बीच बढ़ती हुई दूरी को कम कर सकें। इसमें एक रुकावट उस अजीबो-गरीब लिबास की वजह से हुई जो उनके खानदान के कुछ लोग पहनते थे। विलियम गार्डनर को भी सिकंदर के भाई रॉबर्ट स्किनर को देखकर बड़ा अजीब लगाः ‘वह बहुत छैला बने रहते थे और गले में इतने हार पहनते थे जो शायद बैरन फ्रैंक भी अपने कैदखाने में नहीं पहनते होंगे।” उनमें से कुछ स्किनर ख़ानदान के लोगों को दो भिन्न दुनियाओं के बीच टंगे होने से काफी परेशानी होती । थियो मैटकाफ ने अपनी बहन जॉर्जीना (जीजी) को लिखा: “मिस्टर जे स्किनर दो महीने और चौदह दिन से मदहोशी के आलम में हैं, इसलिए वैगनट्राइबर ने उन उलझे हुए खुफिया हालात को मद्देनज़र रखते हुए अपने अख़बार दिल्ली गुज़ट में सफ़ेद मुग़लों के दौर को अलविदा कहते हुए (जिसकी एक सदस्या उसकी अपनी बीवी भी थीं) लिखा कि उनके दिन तमाम हो चुके हैं। उसकी जो भी भावनाएं अपने ससुराल के लोगों के लिए हों, लेकिन वह समझता चाहे था कि भविष्य में क्या होने वाला है और किसकी तरफदारी करनी चाहिए।

लेकिन वह दिन दूर न था जब उसको अपने उस हिंदुस्तानी संस्कृति वाले खानदान से ताल्लुक होने पर शुक्रगुज़ार होना पड़ेगा और अपनी बीवी के सांवले रंग, हिंदुस्तानी बोली और साड़ी पहनने के लिए बहुत शुक्र करना होगा, वह सारी बातें जिन पर अभी उसे, और शायद उसकी बेचारी बीवी को भी, शर्मिंदगी होती थी।

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