हसरत जयपुरी ने नवकेतन के बैनर तले बन रही गाइड फिल्म (Guide Movie) की कहानी पर संदेह जताया। यह बात देव आनंद (dev Anand) को पता चल गई। उन्होंने हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri ) के साथ काम नहीं करने का निर्णय ले लिया। नवकेतन एक सहकर्मी ने देवआनंद से कहा कि “हमने भले ही हसरत जी के साथ एक ही गीत रिकॉर्ड किया है, पर असोसिएशन के नियम के अनुसार उन्हें पूरे पैसे देने होंगे।”

“पूरी फ़िल्म के गीतों के लिए उनके साथ कितने पैसों का अनुबंध है?” देव आनंद ने सवाल किया। “अनुबंध के अनुसार उन्हें हम 25,000 रुपये देंगे।” उन दिनों नामवर गीतकारों को एक गीत के लिए 500 रुपये मिला करते थे। यदि पूरी फ़िल्म के गीत एक ही गीतकार से लिखवाए जाते तो एक निश्चित राशि दी जाती थी।

देव आनंद ने तुरंत 25,000 रुपये का चेक हसरत जयपुरी को भिजवाया और भविष्य में साथ काम नहीं करने के बारे में एक पत्र भी लिख भेजा । पत्र और चेक पाते ही हसरत जयपुरी हड़बड़ा कर नवकेतन के ऑफ़िस की ओर दौड़े “मैं अपने कहे के लिए माफ़ी चाहता हूं देव साहब।” देव आनंद से क्षमा याचना करते हुए हसरत बोले।

“इसकी कोई ज़रूरत नहीं है हसरतजी, मेरी फ़िल्म का विषय और नायक का चरित्र आपको पसंद नहीं आया, फिर हमारा साथ-साथ काम करना बेकार है। भविष्य में यदि आवश्यकता हुई तो आपको ज़रूर बुलवा लूंगा।” देव आनंद ने कहा। यह बात सुनकर हसरत जयपुरी समझ गए कि अब देव आनंद उनके साथ काम नहीं करेंगे। बात ख़त्म हो चुकी थी, इसलिए वे चुपचाप देव साहब के केबिन से बाहर आ गए।

इस घटना के बाद आनंद बंधु नए गीतकार की तलाश में थे। यह बात शैलेंद्र को पता चली। वे शाम के समय देव आनंद से मिलने उनके ऑफ़िस में पहुंचे। गाइड से पहले नवकेतन फ़िल्म्स के बैनर तले बनी और गोल्डी द्वारा निर्देशित फ़िल्म काला बाज़ार के गीत शैलेंद्र ने ही लिखे थे। उनके और गोल्डी के विचारों में समानता थी और दोनों के बीच समन्वय था।

शैलेंद्र ने कहा–“देव साहब, आपकी नई फ़िल्म के गीत मैं लिखना चाहता हूं,”।

आनंद बंधुओं के मन में शैलेंद्र के प्रति आदर और अपनापन था। तुरंत ही उनका प्रस्ताव मान लिया गया। दूसरे दिन ही शैलेंद्र, देव साहब और गोल्डी तीनों देव आनंद के घर गीतों के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए मिले।

जिस सिचुएशन पर हसरत जयपुरी ने गीत लिखा था और बाद में हटा दिया गया था, उसी गीत की ही सिचुएशन झोपडी ने शैलेंद्र को समझाई। कुछ ही देर में शैलेंद्र की लेखनी से शब्द झरने लगे :

‘दिन ढल जाए हाय, रात न जाए…’

गीत की पहली पंक्ति ही कितनी अर्थपूर्ण है… दिन तो किसी तरह कट जाता है… रात काटे नहीं कटती, गीत लिखने की यह बैठक जारी थी कि रात 11 बजे के करीब सचिन देव बर्मन पधारे। तब तक शैलेंद्र गीत का मुखड़ा और अंतरा लिख चुके थे। गीत के बोल ध्यान से सुनने के बाद सचिन दा ने हार्मोनियम खोला और पान चबाते हुए घंटे भर में ही गीत की धुन तैयार कर दी। उसके बाद धीरे-धीरे तेरे मेरे सपने, पिया तोसे नैना लागे रे, क्या से क्या हो गया, अल्ला मेघ दे, हे राम मोसे छल किए जाए, आदि गीतों के बोल और धुनें तैयार होती गईं।

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