जफर की रचना में झलकता है उनका दर्द
ब्रिटिश रेज़िडेंट सर थॉमस मैटकाफ (Sir Thomas Metcalfe) शुरू में गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि की हैसियत से मुगल दरबार में भेजा गया था। लेकिन जैसे-जैसे अंग्रेज़ों की ताकत बढ़ती गई और मुगलों (mughal empire) की घटती गई, उन्होंने दिल्ली पर हुकूमत करने का और ज़्यादा जिम्मा ले लिया और अपने को दिल्ली का गवर्नर (delhi LG) कहने लगे।
दिल्ली (Delhi) के बाहर से कोई सरदार या शाही खानदान का व्यक्ति बगैर मैटकाफ की इजाज़त के लाल किले (red fort) के अंदर दाखिल नहीं हो सकता था। अपनी जमीन से लगान या किराया वसूल करने के लिए भी ज़फर को अंग्रेज़ों के कोर्ट में दर्खास्त देना पड़ती थी।” वह अपने ही खजाने से अपने खानदान के लोगों को कोई कीमती तोहफा या जेवर बगैर रेज़िडेंट को सूचित किए नहीं दे सकते थे। और अगर ऐसा किया भी तो इसकी ख़बर लग जाने पर, उन्हें नीचा दिखाने के लिए उनसे वह बगैर इजाज़त का दिया हुआ तोहफा वापस मांगने की मांग की जाती।”
ज़फ़र (bahadur shah zafar) दिल्ली के बाहर से आए हुए अमीरों और रईसों को खिलअत भी नहीं दे सकते थे जब तक उनको इजाज़त न मिले। जिस दिन जवांबख़्त की शादी थी तो कोलेसर के राजा गुलाब सिंह ज़फ़र के दरबार में उनसे मिलने आए और उनको एक घोड़ा और सात सोने की मोहरें नज़र कीं। इसके बदले में ज़फ़र ने उनको एक खिलअत दी लेकिन मैटकाफ़ ने फौरन उसे वापस करने का हुक्म दिया क्योंकि उस रेज़िडेंट की नज़र में राजा अंग्रेज़ों की रिआया था और उसे कोई हक न था कि वह खुलेआम किसी और बादशाह की ताबेदारी ज़ाहिर करे।
ज़फ़र को इससे कितनी शर्मिंदगी हुई वह उन्होंने अपनी ग़ज़ल में बयान किया है। उन्होंने अपनी उलझनों और कैद के दर्द को अपने शेरों में ढालना शुरू कर दिया था। उनकी शायरी में पिंजरे में कैद परिंदे या बुलबुल का ज़िक्र मिलता है जो अपने पिंजरे की सलाखों से बाहर चमन के लिए तरसती है:
हुई बादे बहारी चमन में अयां गुल बूटों में बाकी रही ना
मेरी शाख़ उम्मीद न लाई समर
मेरी नींद गई मेरा चैन गया और
कोई गुंचा खिला बुलबुल को
बेकली सूए दाम होती है और
बुलबुल को बाग़बाँ से न सैयाद से गिला
किस्मत में कैद लिखी थी
फसले बहार में और बांध कर पर न मुझे छोड़
कफस से सैयाद फायदा करने से क्या तायर पर बंद के बंद
और दूसरी जगह वह अपनी हालत इस तरह बयान करते हैं: “जो भी इस अंधेरी जगह में दाखिल होता है, वह उम्र भर अंग्रेज़ों की कैद में गिरफ्तार रहता है।