मिर्जा गालिब बहुत मायूस थे। उनकी मायूसी की एक वजह यह भी थी कि वह आम दिल्ली वालों के विपरीत पश्चिम की साइंसी तरक्की से बाखबर थे जो वह 1827 के कलकत्ता के दौरे के दौरान खुद देख चुके थे। जब सैयद अहमद खां ने उनसे दर्खास्त की कि वह आईने-अकबरी के नए संस्करण की भूमिका लिख दें जिसमें अकबर के मशहूर दरबार का ज़िक्र है तो उन्होंने जवाब दिया कि खान को हमेशा अतीत के मुग़लों के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए बल्कि भविष्य को अपनाना चाहिए।

गालिब ने कहा-

“इंग्लैंड के लोगों की तरफ देखो वह हमारे पूर्वी पूर्वजों से कहीं आगे निकल गए हैं। उन्होंने हवा और मौजों पर कब्जा कर लिया है और अपने जहाज पानी, आग और भाप के ज़रिए चला रहे हैं। वह बगैर मिजराब के संगीत पैदा करते हैं और अपने जादू से अल्फाज को परिंदों की तरह हवाओं में उड़ाते हैं। उन्होंने फिजा में एक आग रौशन कर दी है और शहरों में बगैर तेल के दीयों के उजाला कर दिया है। इन नए कानून ने सब पुराने कानूनों को अप्रचलित कर दिया है। तुम क्यों पुराने खंडहरों से तिनके चुन रहे हो जब ज्ञान के मोतियों का खजाना तुम्हारे सामने है।””

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