बहादुर शाह जफर के बडे बेटे मिर्जा फखरू की मृत्यु और अवध पर अंग्रेजों द्वारा कब्जे के बाद मिर्जा गालिब ने सोचा कि बेहतर होगा कि किसी और आमदनी के जरिए की तलाश करें। वह अंग्रेजों को दरबारी साहित्य व तौर-तरीके भी सिखा रहे थे जिनकी उनमें बहुत कमी थी। यह सोचकर उन्होंने एक कसीदा मलिका विक्टोरिया की शान में लिखकर केनिंग के हाथ भिजवा दिया।

इसके शुरू में मलिका की तारीफ “सितारों की तरह चमकदार” कहकर की गई थी और उनके गवर्नर जनरल को सिकंदर की तरह महान और फरीदून की तरह शानदार कहा गया था और फिर वह फौरन अपने मतलब की तरफ आ जाते हैं यानी मलिका को यह पुराना रिवाज़ याद दिलाना कि शासक को अपने दौर के शायरों का संरक्षण करना चाहिए ताकि वह उनको अपनी कविता के ज़रिए अमर कर सकें।

जाहिर है लंदन की महान बेगम उन सब तौर-तरीकों से इतनी परिचित न थीं जितना उनको होना चाहिए था, इसलिए गालिब ने साथ में एक खत लिखकर इसे और खुलकर बताया और मलिका को याद दिलाया किः

“तारीख़ के सब नामवर बादशाहों ने अपने शायरों और शुभचिंतकों के मुंह मोतियों से भर दिए हैं। उन्हें सोने में तौला है और जागीरें अता की हैं और इसी तरह काबिले तारीफ मलिका का भी फर्ज है कि वह दर्खास्तमंद ग़ालिब को मेहर ख्वान का ख़िताब अता करें, और खिलअत बनों और अपनी फैयाजी के खजाने से चंद टुकड़े दें, जिसका सादा जबान में मतलब था पेंशन।

गालिब बहुत बेचैनी से मलिका के शुक्रिये के जवाब और एक बड़ी पेंशन का इंतज़ार करते रहे लेकिन वह न आना था न आया। लेकिन यह कुसीदा जल्द ही उनके लिए इससे ज़्यादा फायदेमंद साबित होगा, यानी उनकी जान बचाने का जरिया।

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