CAPFs में 33 फीसदी होनी चाहिए महिलाओं की भागीदारी

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

भारत में महिलाओं के लिए समान अवसर प्रदान करने और सशक्तिकरण के प्रयासों में एक बड़ा कदम तब माना गया था, जब सरकार ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) में 33% महिला भागीदारी का लक्ष्य रखा। यह फैसला महिलाओं को सुरक्षा बलों में समुचित प्रतिनिधित्व देने और लैंगिक समानता की दिशा में एक साहसिक कदम था। लेकिन हाल ही में लोकसभा में गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़े इस लक्ष्य की वास्तविकता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।

आंकड़ों के अनुसार, 30 सितंबर, 2024 तक CAPFs और असम राइफल्स में कुल तैनात 9,48,204 कर्मियों में से केवल 42,190 महिलाएं हैं, जो कुल का मात्र 4.44% है। यह आंकड़ा न केवल घोषित लक्ष्य से बहुत दूर है, बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाए गए कदमों की वास्तविक प्रगति पर पुनर्विचार की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।

आंकड़ों की हकीकत

गृह मंत्रालय के आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि महिलाओं की भागीदारी बलवार निम्न स्तर पर है:

  • केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF): 3.38%
  • सीमा सुरक्षा बल (BSF): 4.41%
  • केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF): 7.02%
  • भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP): 4.05%
  • सशस्त्र सीमा बल (SSB): 4.43%
  • असम राइफल्स (AR): 4.01%

इसके अलावा, वर्ष 2024 में केवल 835 महिलाओं को CAPFs और असम राइफल्स में भर्ती किया गया। 2025 में 4,138 महिलाओं की भर्ती का लक्ष्य है, लेकिन यह भी 33% भागीदारी के लक्ष्य को पाने के लिए नाकाफी है।

33% का लक्ष्य क्यों है महत्वपूर्ण?

महिलाओं को CAPFs में 33% भागीदारी का लक्ष्य देना केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और रणनीतिक महत्व है।

  1. लैंगिक संतुलन: सुरक्षा बलों में महिलाओं की अधिक भागीदारी लैंगिक संतुलन सुनिश्चित करती है। यह महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों और उनके समाधान में अधिक संवेदनशीलता ला सकती है।
  2. महिलाओं का प्रतिनिधित्व: जब महिलाएं समाज के हर क्षेत्र में मौजूद होंगी, तो उनके अधिकारों और मुद्दों को बेहतर तरीके से समझा और हल किया जा सकेगा।
  3. रक्षा में विविधता: विभिन्न परिस्थितियों में महिलाओं की भूमिका और उनके दृष्टिकोण से सुरक्षा बलों को रणनीतिक लाभ हो सकता है।

लक्ष्य से दूर रहने के कारण

सरकार के 33% लक्ष्य के बावजूद, आंकड़े बताते हैं कि इस दिशा में कई बाधाएं हैं।

  1. संरचनात्मक समस्याएं: भर्ती प्रक्रियाओं में कई बार महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित होती हैं, लेकिन चयन प्रक्रिया में वे पूरी तरह भरी नहीं जातीं।
  2. सांस्कृतिक बाधाएं: ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, महिलाओं को परिवारों और समुदायों से सेना या पुलिस बलों में शामिल होने के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती।
  3. कार्यस्थल की चुनौतियां: तैनाती के दौरान महिलाओं के लिए अनुकूल माहौल, सुरक्षा और सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए।

क्या किया जाना चाहिए?

33% लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार और बलों को मिलकर काम करना होगा।

  1. आरक्षण का प्रभावी उपयोग: महिलाओं के लिए आरक्षित पदों को भरने के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाए जाने चाहिए।
  2. प्रशिक्षण सुविधाएं: महिलाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम और शिविर आयोजित किए जाने चाहिए, जो उनकी जरूरतों और चुनौतियों के अनुसार हों।
  3. सुरक्षा और सुविधा: तैनाती के दौरान महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास, शौचालय, और अन्य आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  4. समाज में जागरूकता: ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सुरक्षा बलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
  5. कैरियर प्रगति के अवसर: महिलाओं को नेतृत्व की भूमिकाओं में लाने के लिए विशेष प्रशिक्षण और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

भविष्य की संभावनाएं

हालांकि वर्ष 2025 में 4,138 महिलाओं की भर्ती की योजना है, यह संख्या 33% लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। यदि सरकार गंभीर है, तो उसे भर्ती संख्या और प्रक्रियाओं में तेजी लानी होगी। इसके साथ ही, महिलाओं को CAPFs में आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए व्यापक रणनीतियां अपनानी होंगी।

CAPFs में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का लक्ष्य केवल कागजों पर एक आंकड़ा नहीं होना चाहिए। यह भारत में लैंगिक समानता और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि सरकार ने पिछले वर्षों में इस दिशा में कुछ प्रगति की है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

यदि भारत को एक प्रगतिशील और समतावादी समाज बनाना है, तो महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबर प्रतिनिधित्व और अवसर देना होगा। CAPFs में 33% भागीदारी का लक्ष्य केवल एक शुरुआत है; इसे वास्तविकता में बदलने के लिए सरकार, सुरक्षा बलों और समाज को एकजुट होकर काम करना होगा।

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