-अंग्रेज नागालैंड में सरताज कालाेनी बसाना चाहते थेे, बुरी तरह असफल हुए
-जवाहर लाल नेहरू चाहते थे नागाओं की संस्कृति जीवति रहे
ये वे दिन थे जब नागालैंड का पहाड़ी इलाका अभी असम का ही हिस्सा था। भूमिगत नागा एक समस्या बने हुए थे। जयप्रकाश नारायण और एक ब्रिटिश मिशनरी देव माइकल स्कॉट कोई समाधान तलाशने में चेलिया की मदद कर रहे थे। लेकिन नागा स्वाधीनता की माँग पर अड़े हुए थे और किसी समझौते पर पहुँचना मुश्किल हो रहा था।
भारत सरकार नागाओं की भावनाओं को लेकर बहुत संवेदनशील थी। नेहरू ने उन्हें भारत के साथ जोड़ने के लिए एक नीति तैयार की थी। अंग्रेजों ने नागा पहाड़ियों को वर्मा के ऊपरी इलाके से जोड़कर एक ‘सरताज कॉलोनी’ बनाने की कोशिश की थी, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाए थे। इसमें कोई शक नहीं था कि वहाँ अंग्रेजों का हुक्म नहीं चलता था, और उनके राज के दौरान यह क्षेत्र शेष भारत के साथ एकीकार नहीं हो पाया था। भारत सरकार की नीति यह थी कि इस क्षेत्र को देश के भीतर एक राज्य में बदल दिया जाए, लेकिन साथ ही नेहरू यह भी चाहते थे कि नागाओं की अपनी संस्कृति जीवित रहे। इसलिए उनके प्रदेश में प्रवेश करने के लिए परमिट व्यवस्था लागू कर दी गई।
1950 के दशक के मध्य वर्षों तक नागा प्रदेश का प्रशासन नेहरू के अधीन विदेश मंत्रालय के हाथ में था। पन्त के गृहमंत्री बनने के बाद इसका प्रशासन गृह मंत्रालय को सौंप दिया गया। पन्त का कहना था कि नागालैंड की समस्या मिशनरियों द्वारा पैदा की गई थी। उन्होंने गृह मंत्रालय को विदेशी मिशनरियों के वीजे की अवधि न बढ़ाने का निर्देश दिया। विदेशी चर्चों द्वारा खूब हंगामा मचाने के बावजूद उनमें से कइयों को वापसी का रास्ता दिखा दिया गया।