सलाउद्दीन शेख सदरुद्दीन के शिष्य थे। उनकी मृत्यु दिल्ली में हुई और उनको खिड़की गांव से एक मील के करीब दफन किया गया। मकबरा उनकी कब्र पर (1353 ई.) में बना। यह बड़े विद्वान, धार्मिक और उसूलों के पक्के थे। यह चिराग दिल्ली के समकालीन और पड़ोसी थे। यह मोहम्मद शाह तुगलक के जमाने में हुए हैं, जिसको यह बड़ा सख्त सुस्त कहा करते थे। बादशाह इनके प्रवचन बड़ी शांति से सुन लिया करता था और यह उनके चरित्र बल का प्रभाव था कि वह इनकी सब बातें सहन कर लेता था।
मकबरा इमारतों के खंडहरों के बीच में खड़ा है। यह एक कमरे का गुबंद है जो 19 मुरब्बा फुट लंबा-चौड़ा और 25 फुट ऊंचा है। यह पत्थर चूने का बना हुआ है। बाहर लाल पत्थर लगे हुए हैं। इसका चबूतरा 33 मुरब्बा फुट है, जिसकी ऊंचाई जमीन से 4 फुट है। गुंबद 12 पत्थर के स्तंभों पर खड़ा है। बीच के दो खंभों के बीच पूर्वी द्वार है। कब्र संगमरमर की 8 फुट×4 फुट की है और 1 फुट ऊंची है। चारों ओर 1 फुट ऊंचा कटारा लगा है। कब्र पर गुंबद की छत के बीच में एक उल्टा कटोरा लटक रहा है। मकबरे का गुंबद तुगलक नमूने का बना हुआ है। मकबरे के साथ वाली मस्जिद बरबाद हो चुकी है और यही हालत मजलिसखाने की तथा फरीद शकरगंज और सलाउद्दीन की कक्षों की है। फीरोज शाह के जमाने में उसके वजीर खांजहां ने जो मस्जिदें बनवाई, उनमें खास-खास ये हैं।