यह गुंबद पुराने किले और दरगाह हजरत निजामुद्दीन के बीच में स्थित के पश्चात है। अकबर का एक नवाब नौबत खां था। उनका यह मकबरा है। इसे उसने अपने जीवन काल में 1565 ई. में बनवाया और मृत्यु वह इसमें दफन किया गया। इसका नाम नीली छतरी इसलिए पड़ा कि किसी समय इस पर चीनी का काम था और बुर्ज पर नीला छतर था, जो अब बिल्कुल टूट-फूट गया है।
इसका अहाता कई एकड़ जमीन में है। मकबरे का दरवाजा 25 फुट मुरब्बा है। दरवाजे के पीछे छोटी-सी इमारत तीन दरों की है। इस इमारत के पिछवाड़े एक अठपहलू छह फुट ऊंचा चबूतरा है, जिसका व्यास 79 फुट है। चबूतरे के दक्षिण में आमने-सामने छत पर चढ़ने के दो जीने हैं। चबूतरे के उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम के कोनों में दो पक्की कब्रें हैं। इनके अतिरिक्त भी कई और कब्रों के निशान हैं।
चबूतरे के बीचोंबीच नौबत खां का मकबरा है, जो अठपहलू इमारत है। तमाम मकबरा चूने पत्थर का है, जिसमें हरी, पोली, नारंगी, रंग-बिरंगी ईटें लगी हुई थीं। मकबरे के अंदर कुरान की हैं। दिल्ली-निजामुद्दीन सड़क पर बाएं हाथ की यह अंतिम इमारत सड़क आयतें लिखी हैं। गुंबद के आठ दर सात फुट ऊंचे और पांच फुट चौड़े हैं, जिनकी महराबों पर आले बने हुए हैं। गुंबद के अंदर भी सीढ़ियां से मिली हुई है। मकबरे की छत चपटी है।