कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं कि शास्त्री जी (lal bahadur shastri) ने ताशकंद में रात के समय पालक के साग और आलू की सब्जी के साथ हल्का भोजन किया। खाने के बीच ही उन्हें दिल्ली से फोन आया, जिसे जगन्नाथ ने सुना। यह शास्त्री के एक अन्य निजी सचिव वेंकटरमन का फोन था। उन्होंने बताया कि दिल्ली में ताशकन्द समझौते की अनुकूल प्रतिक्रिया हो रही थी, लेकिन शास्त्री के घर के लोग खुश नहीं थे।
जगन्नाथ ने शास्त्री से पूछा कि क्या वे अपने घर पर बात करना चाहेंगे, क्योंकि पिछले दो दिनों से उनकी अपने परिवार से बात नहीं हो पाई थी। शास्त्री ने पहले तो ‘न’ कहा, लेकिन फिर अपना विचार बदलकर उन्हें नम्बर मिलाने के लिए कहा। यह भी हॉट-लाइन थी, इसलिए झट से नम्बर मिल गया।
तब रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे (ताशकन्द का समय नई दिल्ली से आधा घंटा आगे था)। सबसे पहले शास्त्री की अपने दामाद वी. एन. सिंह से बात हुई। उन्होंने कुछ खास नहीं कहा। इसके बाद शास्त्री की सबसे बड़ी और चहेती बेटी कुसुम फोन पर आई। शास्त्री ने उनसे पूछा, “तुमको कैसा लगा?” कुसुम ने जवाब दिया, “बाबूजी, हमें अच्छा नहीं लगा ।” शास्त्री ने ‘अम्मा’ के बारे में पूछा। घर के सभी लोग उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को ‘अम्मा’ कहकर बुलाते थे। कुसुम ने कहा, “उन्हें भी अच्छा नहीं लगा।” इस पर शास्त्री ने उदास होकर अपने सहयोगियों से कहा, “अगर घरवालों को अच्छा नहीं लगा तो बाहरवाले क्या कहेंगे!”
शास्त्री ने कुसुम को फोन अम्मा को देने के लिए कहा। कुसुम ने कहा कि अम्मा बात करना नहीं चाहतीं। शास्त्री के बार-बार कहने पर भी ललिता शास्त्री फोन पर नहीं आई। इसके बाद शास्त्री ने भारतीय अखबारों को काबुल भेजने के निर्देश दिए, जहां भारतीय वायु सेना का एक विमान उन्हें लिवाने के लिए अगले दिन पहुंचनेवाला था।
जगन्नाथ का कहना था कि टेलीफोन पर हुई बातचीत से शास्त्री बहुत ज्यादा विचलित हो गए थे। इससे पहले भारतीय पत्रकारों का रवैया भी बहुत खुश्क रहा था। ये अपने कमरे में चहलकदमी करने लगे थे। यह कोई अनोखी बात नहीं थी, वे दिल्ली में भी अपने घर पर मिलने आने वालों से बात करते हुए अकसर चहलकदमी करने लगते थे। लेकिन उस रात वे कुछ ज्यादा ही देर तक चहलकदमी करते रहे और सोचते रहे। दो बार दिल का दौरा झेल चुके व्यक्ति के लिए फोन पर हुई बातचीत, पत्रकारों का व्यवहार और यह लम्बी चहलकदमी शायद खतरनाक साबित हुई होगी।