विलियम डेलरिम्पल अपनी किताब द लास्ट मुगल में लिखते हैं कि मुगलिया दौर में दिल्लीवाले अंग्रेजों को हीन समझते थे। दिल्ली में अफवाह फैल गई थी कि अंग्रेज लंका की औरतों और बंदरों के मेल की नाजायज़ औलाद हैं या बंदरों और सूअर के मेल से हैं। आखिरकार दिल्ली के एक प्रमुख मौलाना शाह अब्दुल अज़ीज को फतवा जारी करना पड़ा कि यह बात बिल्कुल फिजूल है। कुरआन या हदीस में कहीं भी ऐसा ज़िक्र नहीं है। फिरंगियों का बर्ताव चाहे जितना भी अजीब हो मगर वह फिर भी ईसाई हैं और अहले-किताब हैं।” और उनके साथ कभी खाना खा लेने में भी कोई हर्ज नहीं।
शाह अब्दुल अजीज ने यह भी बयान दिया किया कि शरीअत के लिहाज से अंग्रेज़ों की नौकरी करना जायज है। हालांकि अंग्रेजों की अक्लमंदी के बारे में उनकी कोई अच्छी राय न थी और वह उनको इस्लाम की एकदम बुनियादी तालीम की भी बारीकी समझने के अयोग्य मानते थे। उनका कहना था कि हर कौम की अपनी सलाहियत होती है। जैसे हिंदुओं को गणित में महारत है। फिरंगियों को उद्योग और प्रौद्योगिकी में महारत ज़रूर है, लेकिन उनमें से चंद लोगों के सिवाय बाकी का दिमाग तर्कशास्त्र, धर्मशास्त्र और दर्शन के बारीक नुक्तों को समझने योग्य नहीं है।
दिल्ली वालों का अंग्रेज़ों के साथ सीधे तौर पर कोई ताल्लुक न था इसलिए यहां के लोग बहुत आत्मविश्वासी, श्रेष्ठता के भाव का शिकार थे, और अपनी आला तहजीब और कल्चर पर गर्व करते थे। अभी इस शहर को अपना आत्मविश्वास ख़त्म होने का सदमा नहीं पहुंचा था, जो हमेशा फिरंगी राज और उसकी बेलगाम हुकूमत के साथ हुआ करता था।
दिल्ली एक तरह से तेज़ी से बदलते हुए हिंदुस्तान में अब भी मुगलिया रस्मो-रिवाज़ और रिवायतों का एक हवाई बुलबुला था। अगर शाहजहानाबाद में कोई किसी की तारीफ करना चाहता तो वह पुराने समय की शायरी या इस्लामी संकेतों का सहारा लेता। मसलन यह कि दिल्ली की औरतें सर्व की तरह लंबे कद वाली और मर्द फ़रीदून की तरह उदार, अफलातून की तरह काबिल, सुलेमान की तरह समझदार और चिकित्सा में जालीनूस की तरह माहिर थे। एक शख्स जो अपने शहर और उसकी खूबियों के बारे में कोई शक न रखता था वह नौजवान सैयद अहमद खां थे। वह लिखते हैं:
दिल्ली का पानी शहद की तरह मीठा था और हवा सुकून बख़्शने वाली। और किसी बीमारी का नामो-निशान न था। ख़ुदा के फजुल से यहां के सब रहने वाले गोरे और खूबसूरत हैं और बेमिसाल किसी और शहर का बाशिंदा उनका मुकाबला नहीं कर सकता। खासतौर पर यहां के लोग इल्म हासिल करने और विभिन्न कलाओं में महारत पाने में बहुत दिलचस्पी रखते हैं और अपने रात-दिन इसी शौक में गुजारते हैं। अगर उनके सारे हुनरों का ज़िक्र किया जाए तो एक पूरी किताब लिखी जा सकती है।”