12th October 1939: Mahatma Gandhi (Mohandas Karamchand Gandhi, 1869 - 1948) arrives in Delhi with members of his staff to confer with Viceroy Lord Linlithgow on the question of the War. To the left of Gandhi is Mahadir Desai and further left is Rajendra Prasad (1884 - 1963). Original Publication: Picture Post - 4325 - India - pub. 1950 (Photo by Central Press/Getty Images)

बिना खड़ग, बिना ढाल देश को आजादी दिलाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (mahatma gandhi jayanti) का दिल्ली से भी खास रिश्ता रहा है। राजधानी में उन्होंने न सिर्फ आजाद देश की कल्पना की बल्कि लोगों को भी अहिंसा और प्रेम के रास्ते पर चलना सिखाया। यह बेहद दुखद रहा कि राजधानी उनके जीवन का आखिरी पड़ाव भी बना। लेकिन इससे पहले राजधानी के लोगों को गांधी जी के साथ कुछ पल बिताने का मौका भी मिला। वर्ष 1915 से लेकर उनके मृत्यु तक के सफर में उन्होंने दिल्ली के कई क्षेत्रों में लोगों के दिलों को छू लिया। शायद यही वजह रही कि दिल्ली के लोगों ने भी उन्हें बहुत स्नेह दिया।

राष्ट्रपति भवन में गांधी दर्शन

पहले वायसराय हाउस कहलाए जाने वाले राष्ट्रपति भवन में महात्मा गांधी कई बार अंग्रेजी हुकूमत से बातचीत करने आए। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि उनका इस भवन से विशेष नाता रहा। शायद यही वजह है कि इस वर्ष दो अक्टूबर से दिल्ली के लोग इस भवन में भी गांधी जी के विचारों और उनके आंदोलनों को करीब से जानने का मौका मिलेगा। इस संग्रहालय को कुछ इस तरह से तैयार किया गया है जहां लोग उनके जीवन के दर्शन के साथ साथ उनकी सादगी को भी महसूस कर सकेंगे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उस संघर्ष भरे दौर को करीब से देखने और जीने की चाहत राष्ट्रपति भवन स्थित नए संग्रहालय में पूरी होती दिखाई देती है। गांधी जी के सत्याग्रह के उस दौर को थ्री डी तकनीक के माध्यम से लोगों को रूबरू कराने के लिए संग्रहालय में थ्री डी थियेटर, वर्चुअल रियलिटी केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जहां लोग महात्मा गांधी के साथ कदम से कदम मिला सकेंगे। गैरेज भवन में विकसित किए गए इस संग्रहालय में गांधी जी की दांडी यात्रा, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह को पुतलों के माध्यम से दर्शाया गया है। इसी तल पर महात्मा गांधी की दांड़ी यात्रा और नमक सत्याग्रह को पुतलों के माध्यम से दिखाया गया है। इस तल पर कई स्क्रीन भी लगाए गए हैं। बेसमेंट के दूसरे तल पर थ्री डी थियेटर है जहां महात्मा गांधी के जीवन पर फिल्म दिखाई जाएगी। काले चश्में के साथ आप गांधी जी के हर यात्रा को करीब से देख सकेंगे। दो अक्टूबर से आम लोग गांधी दर्शन कर सकेंगे। लेकिन इसे देखने के लिए टिकट 60 दिन पहले ही बुक की जा सकेगी। संग्रहालय में प्रवेश के लिए पचास रुपए का शुल्क रखा गया है।

..जब मूंगफली बेचने वाली महिला ने दान किया अपनी एक दिन की कमाई

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मृत्यु के बाद भी वे कभी राजधानी के लोगों के दिलोदिमाग से दूर नहीं हुए। लोगों की भावनाएं इस कदर थी कि उनको व्यक्त करने के लिए शायद शब्द छोटे पड़ जाए लेकिन सच है कि उनकी स्मृतियों को सहेजने वाले आउटर रिंग रोड संग्रहालय लोगों द्वारा दिए गए दान से तैयार किया गया था। संग्रहालय में वो तांबे के सिक्के आज भी देखे जा सकते हैं जो कभी इंडिया गेट पर मूंगफली बेचने वाली महिला ने दान में दिए थे। इस संग्रहालय को बनाने के लिए हर बैंक में खास काउंटर खोले गए थे। इसी एक काउंटर में एक महिला ने एक पोटली जमा कराई थी। काउंटर में बैंक कर्मचारी ने पूछा भी कि तुम क्यों दान दे रही और आज खाना कैसे खा पाओगी? तो उसने जवाब दिया था कि जिस महान आत्मा ने देशवासियों के लिए कई दिन उपवास रखा उसके लिए क्या मैं एक दिन भूखी भी नहीं रह सकती? इसी भावना के समंदर के सैलाब में वर्ष 1958 में संग्रहालय बन कर तैयार हुआ। इस संग्रहालय में गांधी जी के जीवन, आश्रम जीवन, उनके वस्त्र, बर्तन, वो तीन बुलेट और उनके जीवन से जुड़ी तमाम चीजें देखी जा सकती हैं। इसके साथ उनका टोपी प्रेम भी देखा जा सकता है। कहा जाता है कि गांधी जी को टोपी से काफी लगाव था इसलिए नौखाली से आए प्रतिनिधि ने उन्हें नौखाली टोपी भेंट की थी। ऐसी तमाम वस्तुओं में आप गांधी जी के दर्शन कर सकेंगे।

जग दर्शन का मेला, उड़ जाएगा हंस अकेला..

जग दर्शन का मेला, उड़ जाएगा हंस अकेला ..। तीस जनवरी मार्ग स्थित गांधी स्मृति में पंडित कुमार गंधर्व के स्वरों में गूंजायमान यह गीत गांधी जीवन और उनकी अंतिम यात्रा के कुछ पलों के सफर में सभी को हमसफर बनाती प्रतीत होती है। उस घटना को घटे कई दशक बीत गए लेकिन गांधी जी की स्मृतियां आज भी उस पार्क में जीवंत होती दिखाई देती है। बिरला हाउस में आज भी उनकी यादें कुछ इस तरह से सहेजी गई हैं जिनसे उनके हर पपल वहीं होने का अभास होता है। बिरला हाउस में गांधी जी ने अपने जीवन के अंतिम 144 दिन बिताए थे, उन दिनों की के अहम पलों को तस्वीरों और मल्टी मीडिया के सहारे आज के लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। उस कमरे में प्रवेश करते ही गांधी जी की बैठक, उनकी लाठी, चश्मा, और उनके तीन बंदर आज भी करीने से रखे गए हैं। गैलरी में सरदार बल्लभ भाई पटेल से उनकी आखिरी मुलाकात की तस्वीर को देखते हुए उस कमरे में प्रवेश होता है जहां गांधी जी के एक दिन पहले की दिन चर्या को महसूस किया जा सकता है। इस कमरे के ऊपर वाले माले में मल्टी मीडिया के सहारे गांधी दर्शन के दर्शन कराए जाते हैं।

बड़े चश्में से झांकते गांधी जी, प्रोजेक्टर से स्टेज पर गांधी जी की हस्तलिखित लेख, उनके प्रिय भजन और एकता में बल, सादा सरल जीवन, उच्च विचारों को बड़े रोचक तरीके से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश सफल है। गांधी जी और आधुनिकता का यह मेल दिलचस्प भी है। वहीं, बिरला हाउस के पीछे उस प्रार्थना स्थल को देख कर मन भावनाओं में बहने भी लग जाता है। बिरला हाउस के उस दरवाजे से बने पादुकाओं के निशां उनकी अंतिम यात्रा की कहानी बयां करती है। रोजाना के समय से थोड़ा लेट 30 जनवरी 1948 की शाम 5.10 मिनट पर प्रार्थना स्थल की ओर जाते वक्त नाथू राम गोडसे ने तीन गोलियां मार कर उनकी हत्या कर दी। अंतिम यात्रा के उस रास्ते पर लगे कई चित्रों और संदेश वहां जाने वाले लोगों को आज भी गांधी जी के होने का अहसास कराती है। क्योंकि गांधी जी आज भी विचारों में जिंदा हैं।

राजघाट बना समाधि स्थल ..

गांधी जी की मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर को यमुना के किनारे बने राजघाट में पंच तत्व में विलीन किया गया। दरअसल इससे पहले भी इस घाट को राजघाट ही कहा जाता था। लालकिले में हिंदू परिवार भी रहा करते थे। इस घाट में हिन्दू परिवार नहाने धोने आया करते थे। चूंकि यहां आने वाले लोग राजा के कर्मचारी हुआ करते थे इसलिए इस घाट का नाम राजघाट पड़ गया, लेकिन 1948 के बाद राजघाट गांधी समाधि का पर्याय बन गया। आज इस स्थान पर लोग दूर दूर से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं।

दिल्ली में लगभग 100 स्थानों पर रुके थे गांधी जी

रामचंद्र राही, सचिव, गांधी राष्ट्रीय स्मृति निधि

महात्मा गांधी के जीवन में दिल्ली एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा। यह शहर उनके जीवन का आखिरी पड़ाव भी रहा क्योंकि यहीं उन्होंने अंतिम सांसे ली और पंच तत्व में विलीन हुए। लेकिन अपने जीवन के सफर में उन्होंने दिल्ली के कई क्षेत्रों में समरसता कायम की और लोगों को आजादी पाने किए एकजुट किया। दिल्ली वालों के लिए वो स्थान किसी धरोहर से कम नहीं है। इसलिए गांधी राष्ट्रीय स्मृति निधि दिल्ली में उन तमाम स्थानों का सर्वे कर रहा है जहां गांधी जी रूके थे या फिर वहां कहीं किसी से मिलने गए थे। निधि ने ऐसे करीब 100 स्थानों को चिन्हित किया है और उन स्थानों में अभी शोध का काम चल रहा है। निधि की योजना है कि उन तमाम स्थानों पर एक स्मृति प्लेट लगाया जाए जिसमें गांधी जी के ठहरने की तारीख से लेकर उनके उद्देश्यों की बातों का जिक्र होगा। मंदिर मार्ग स्थित वाल्मिकी बस्ती, किंग्सवे कैंप में वाल्मिकी बस्ती, सेंट स्टीफेंस कालेज में प्रोफेसर रूद्र के घर, कुतुब मीनार, लालकिले, वायसराय हाउस( राष्ट्रपति भवन, बिरला भवन जैसे स्थानों के साथ कुछ ऐसे स्थान दिल्ली में रहे जहां गांधी जी अकसर जाया करते थे। इनमें कुछ ऐसे स्थान भी हैं जिनके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है जैसे पुरानी दिल्ली के दरियागंज में डॉ. अनसारी कोठी नंबर वन, संगम थियेटर (जगत सिनेमा), मेजेस्टी टाकीज, रामलीला ग्राउंड, कोसी कलान, मॉर्डन स्कूल, जामिया मिलिया इस्लामिया, ब्रिज किशन चांदीवाला के क्लब, बख्तियार चिश्ती दरगाह, पारसी रुस्तम के बेटे के घर के साथ कई स्थान शामिल हैं। दिल्ली में उनका सफर वर्ष 1915 के आसपास से शुरू हुई था। वे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतर कर किंग्सवे कैंप में वाल्मिकी बस्ती में ठहरने जाया करते थे वहां आज भी उनकी यादें सहेज कर रखी गई हैं। इसी तरह सेंट स्टीफेंस कालेज में भी गांधी जी ठहरे थे जहां उन्होंने वहां के छात्रों को एक जुट किया और अहिंसा का पाठ पढ़ाया था।

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