समिट की सफलता को चुनाव में भुनाने की बीजेपी करेगी कोशिश

एक बार फिर तेज होगी 2017 से पहले और बाद के यूपी पर बहस

संजीव कुमार मिश्र

राजनीतिक कारणों से साल 2024 देश के लिए अहम साबित होगा। अगले वर्ष 18वीं लोकसभा (Indian general election, 2024) के सदस्यों का चुनाव होना है। राजनीतिक दलों ने चुनावों के मद्देनजर मतदाताओं के दिलों तक पहुंचने की कवायद अभी से शुरू कर दी है। इस कोशिश में कौन कितना सफल होगा यह तो भविष्य बताएगा लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश (BJP UP) को लेकर एक दूरदर्शी सोच के साथ सियासी दंगल में उतरेगी। बीजेपी के लिए यूपी काफी अहम है। यूपी का राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक गुणा गणित राजधानी दिल्ली पर कितना असर डालता है इसकी बानगी लखनऊ में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (UPGIS 2023) में साफ-साफ दिखी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi), गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah), रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) समेत कई केंद्रीय मंत्री तीन दिवसीय समिट में शामिल हुए।

डबल इंजन वाली बीजेपी सरकार ने मैराथन प्रयासों के बाद देश के सबसे बड़े राज्य में उस समय निवेश का महाकुंभ आयोजित किया जब अगले बरस लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। मोदी सरकार (Modi Govt) के मंत्रियों ने जनता से संवाद करके भविष्य के लिए बड़ी बुनियादी लकीर खींच दी है। ऐसे में इतना तो तय है कि समिट की उपलब्धियां ना केवल इस साल नौ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव बल्कि लोकसभा चुनावों के सियासी मंचों पर जमकर गूंजेंगी। निसंदेह 2017 से पहले और 2017 के बाद वाले यूपी को लेकर बहस का दौर भी एक नए सिरे से परवान चढेगा। भगवा ब्रिगेड खुले मंचों से यूपी के पिछले किस्से कहानी सुनाती है। योगी (yogi adityanath) के पहले व दूसरे कार्यकाल की रिपोर्ट सामने रखने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती है। कहा तो यहां तक जाता है कि पूर्व के शासनों में यूपी की छवि गुंडे-अपराधी और माफियाराज वाली थी। यूपी दंगों की आग में झुलस रहा था। खुद पुलिस भी सुरक्षित नहीं थी। यूपी की खराब छवि के कारण ही निवेशक भी यहां से कारोबार समेटना चाहते थे। दरअसल, भाजपा यूपी के कल और आज को लेकर एक लंबी पटकथा लिख रही है। जिसमें पूर्ववर्ती सरकारों की नाकामियां और योगी सरकार की उपलब्धियों को विस्तार से जनता के सामने रखा जाएगा। कैसे योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले कार्यकाल में कानून व्यवस्था में सुधार किया। पुलिस में बड़े पैमाने पर भर्तियां की। कानून व्यवस्था का उल्लंघन करने वालों से सख्ती से निपटा। दंगों पर नियंत्रण के नारों के साथ देश-दुनिया के निवेशकों को राज्य में आमंत्रित किया। यूपी में निवेश के आंकड़ों को लेकर विपक्ष जरूर कई तरह के सवाल उठा रहा है लेकिन सरकार का दावा है कि यूपी अब ग्रोथ इंजन की भूमिका निभा रहा है। लखनऊ में तीन दिनों तक चले ग्लोबल इन्वेस्टर समिट से यूपी के आर्थिक बुलंदी की ओर बढ़ने की शुरूआत हो चुकी है।

ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 में शामिल होने वाले ना केवल भारतीय उद्योगपतियों बल्कि  अमेरिका, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, नीदरलेंड यूएई सहित दुनिया के तमाम देशों की बड़ी कंपनियां और निवेशक समूहों ने राज्य में बड़े निवेश की दिशा में अपनी-अपनी घोषणाएं की।

देश-विदेश के मेहमानों के सामने विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए यूपी की शानदार सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाया गया। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी (smriti irani), रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव (ashwini vaishnaw), नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) समेत केंद्रीय मंत्री डॉ वीरेन्द्र कुमार, मनसुख मंडाविया (mansukh mandaviya) अलग-अलग समिट के अलग अलग सत्र में विभिन्न देशों के साथ अपने मंत्रालयों से जुड़े क्षेत्र में निवेश को लेकर बातचीत करते दिखे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ दोनों उपमुख्यमंत्री ब्रिजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्या (Keshav Prasad Maurya), कैबिनेट मंत्री नंदगोपाल गुप्ता नंदी (nand gopal gupta nandi), जितिन प्रसाद (jitin prasada), स्वतंत्रदेव सिंह (swatantra dev singh) सहित राज्य के सभी मंत्री उद्योग जगत की हस्तियों के साथ निवेश प्रक्रिया को अंतिम रूप देते नजर आए। यह सामुहिक प्रयासों का ही परिणाम है कि यह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट रिकार्ड निवेश प्राप्त करने में सफल हो पाया।

यह सब उस यूपी में हुआ है, जो आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य है और हमेशा केन्द्र की राजनीति को दिशा देने का काम करता है। 2014 में जब गुजरात से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर नरेन्द्र मोदी ने यूपी का रुख किया था और काशी के मैदान से चुनावी आगाज किया था तो उसके बाद जो यूपी में कुछ हुआ, उसे भाजपा के स्वर्णिम काल की शुरूआत कहा जा सकता है। उस समय 336 सीटों के साथ भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन बनकर सामने आया था। 283 सांसदों की विजय के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसमें अकेले यूपी से भाजपा को 80 में से 71 सीटों की ताकत हासिल हुई थी।

मोदी वाराणसी और वडोदरा दो सीटों से चुनाव लड़े थे और दोनों जीते थे। बाद में वाराणसी विजय को उन्होंने पास रखा और देश के प्रधानमंत्री बने। केन्द्र की सत्ता में काबिज होने के तीन साल बाद ही 2017 में प्रचंड जीत के साथ यूपी में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। अगली चुनौती भाजपा के सामने 2019 का लोकसभा चुनाव था, तो डबल इंजन सरकार पर राज्य के लोगों ने फिर बड़ा भरोसा जताते हुए भाजपा को 80 में से 62 सीटों पर विजय दिलाकर फिर से मोदी के पीएम बनने का रास्ता साफ कर दिया था। यहां यह ध्यान देना होगा कि 2019 में यूपी में बीजेपी की 9 सीटें कम हुई थी। इसके अलावा 9 सीटें ऐसी थी जिस पर जीत-हार का अंतर 20 हजार से कम था। 4 सीटें तो ऐसी भी थी जिसमें 10 हजार से कम वोटों के अंतर से जीत हार सुनिश्चित हुई थी। मछलीशहर सीट तो बीजेपी ने 181 मतों से चुनाव जीता था। ऐसे में योगी सरकार ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के जरिए निवेश समझौतों को जल्द से जल्द जमीनी स्तर पर लागू करने की कोशिश करेगी। ताकि मतदाताओं को यह भरोसा दिलाया जा सके कि निवेश सिर्फ कागजों में नहीं हुआ है। यदि बीजेपी जनता का विश्वास जीत पाती है तो यकीनन ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट लोकसभा चुनावों की राह आसान करने में मददगार साबित होगा।

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