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यह गुरुद्वारा यमुना के किनारे मैगजीन रोड पर बना हुआ है। इसका नाम मजनूं के टीले के पास होने के कारण पड़ा है। इसकी विशेषता यह कि यहां गुरु नानक देव 1505 ई. में सिकंदर लोदी के काल में आकर ठहरे थे। गुरु महाराज कुरुक्षेत्र, पानीपत, आदि स्थानों की यात्रा करते हुए यहां पहुंचे थे। उनकी यह यात्रा धर्म प्रचार के लिए हुई थी। मजनूं भी एक संत थे। उनके साथ गुरु महाराज अर्से तक यहां ठहरे थे। वह एक बाग में ठहरे हुए थे, पास ही सिकंदर लोदी का अस्तबल था। रात को कहते हैं, उन्होंने रोने की आवाज सुनी।
मरदाना को पता लगाने भेजा। पता लगा कि बादशाह का हाथी मर गया है और महावत से रहा है कि उसकी नौकरी छूट जाएगी। गुरु महाराज ने पानी छिड़ककर हाथी को जिंदा कर दिया। सिकंदर को जब पता लगा तो वह दौड़ा आया, मगर उसे यकीन नहीं आया। उसने गुरु महाराज से कहा कि हाथी को मारकर फिर जिंदा करो। गुरु महाराज ने ईश्वर के नाम पर वैसा ही कर दिखाया। तब बादशाह ने वह स्थान उनकी सेवा के लिए दे डाला।
छठे गुरु हरगोविंद सिंह भी जब बादशाह जहांगीर से मिलने दिल्ली आए थे तो यहां ही ठहरे थे। जहांगीर सिखों की तहरीक को अपने राज्य के लिए खतरनाक समझता था। चुनांचे बादशाह ने उन्हें इसी स्थान से गिरफ्तार करवा लिया और ग्वालियर के किले में बंद कर दिया। 1612 से 1614 ई. तक दो वर्ष वह कैद में रहे। बाद में संत मियांमीर के कहने से उन्हें रिहा किया गया। ग्वालियर से लौटते वक्त गुरु हरगोविंद जी फिर यहां मजनूं के टीले पर ठहरे। गुरु हरराय के बड़े लड़के रामराय जी भी ठहरे थे, जिनके नाम से यहां एक कुआं बना हुआ है। हर शनिवार को रात भर कीर्तन होता है। आश्रम के बीच एक चबूतरा है, उसी पर मजनू बाबा की बुर्जी है।