पहली पत्नी श्यामा जी के निधन के 5वें साल हरिवंश राय बच्चन (Harivansh rai bachchan) साहित्य सम्मेलन में शरीक हुए। सम्मेलन के आखिरी दिन यानी 29 दिसंबर की रात को कवि सम्मेलन का आयोजन था। वापसी का दिन बच्चनजी ने पहले से ही तय कर रखा था। रात भर कवि सम्मेलन में भाग लेने के बाद 30 दिसंबर की सुबह गाड़ी से दिल्ली (delhi) पहुंचकर रात की गाड़ी (train) से इलाहाबाद (prayagraj) जाने का उनका इरादा था। वर्ष के आखिरी दिन की सुबह वह इलाहाबाद पहुंचना चाहते थे, जिससे कि वर्ष के पहले दिन वह संगम स्नान कर सकें। मगर ऊपरवाले को कुछ और ही मंजूर था। आधी रात को व सम्मेलन से अबोहर के सर्किट हाउस में लौटने के बाद बच्चनजी को एक टेलीग्राम मिला, जिसे बरेली से उनके मित्र प्रकाश ने भेजा था।
प्रकाश ने लिखा था, अबोहर से सीधे बरेली चले आओ। ज्ञानप्रकाश जौहरी को बच्चनजी प्रकाश के नाम से बुलाते थे। बच्चनजी के लिए वह दोस्त से भी बढ़कर थे। अपनी कविताओं की प्रेरणा जितनी उन्हें प्रकाश से मिली थी, उतनी किसी और से नहीं। ‘निशा निमंत्रण’ की पांडुलिपि उन्होंने सबसे पहले प्रकाश को ही उनकी राय के लिए भेजी थी। इसीलिए प्रकाश की कोई बात बच्चनजी न कभी टाल पाते थे, न उनकी उपेक्षा कर पाते थे। 30 दिसंबर की रात को बच्चनजी दिल्ली से बरेली जाने वाली गाड़ी में सवार हो गए। प्रकाश के यहां वह सुबह होने से पहले ही पहुंच गए।
तेजी बच्चन खुद मिलने पहुंची थी
एक-दूसरे के घर परिवार का हालचाल पूछने के बाद अचानक बच्चनजी ने इस तरह तार भेजने का कारण जानना चाहा। प्रकाश ने शरारत से अपनी आंख दबाकर कहा, ‘यूं ही भेज दिया था। तुम्हारी कविताएं काफी दिनों से सुनी नहीं थीं। तबीयत हुई तो तुम्हें बुला लिया। इसके अलावा इस घर में इस वक्त तुम्हारी एक प्रशंसिका भी मौजूद है।
बच्चनजी को हैरान होते देखकर प्रकाश ने अपनी पत्नी प्रेमा से कहा, ‘जरा तेजी (teji bachchan) को बुलाओ।’ इसके बाद वह मुस्कराकर बोले, ‘तुम्हारी उस प्रशंसिका का नाम है तेजी सूरी। लाहौर के फतेहचंद कॉलेज में साइकॉलॉजी पढ़ाती है। प्रेमा उसी कॉलेज की प्रिंसिपल है। वहां दोनों साथ ही रहती हैं। बड़े दिन की छुट्टियों में वह प्रेमा के साथ चली आई है। बड़ा प्यारा स्वभाव है उसका। और तुम्हारी कविताओं की घनघोर प्रशंसिका है। ‘